देवभूमि की मर्यादा और शराब ठेके का सवाल

देवभूमि की मर्यादा और शराब ठेके का सवाल
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  • संपादकीय

ऋषिकेश—वह नगरी, जहाँ गंगा की लहरें आत्मा को शुद्ध करने का आह्वान करती हैं, जहाँ साधु-संतों की वाणी में संयम और तप की शक्ति गूंजती है, और जहाँ हर घाट, हर आश्रम में अध्यात्म का सन्नाटा बोलता है। उसी भूमि पर आज शराब के ठेके को लेकर उठे विवाद ने “देवभूमि” की परिभाषा पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है। साधू संतों का कहना है कि पूरे कुंभ क्षेत्र ( देवप्रयाग) तक ड्राई एरिया घोषित किया जाना चाहिए।

मुनिकीरेती-ढालवाला क्षेत्र में खारा श्रोत स्थित शराब का यह ठेका वर्ष 2018 में खुले विरोध के बावजूद संचालित किया गया था। तर्क यह दिया गया कि यह क्षेत्र तकनीकी रूप से “हरिद्वार और ऋषिकेश नगर सीमा” से बाहर है, इसलिए यहां बिक्री की अनुमति दी जा सकती है। पर क्या केवल कागज़ी सीमाएं यह तय करेंगी कि गंगा तट की मर्यादा कहाँ से शुरू होती है और कहाँ समाप्त?

पिछले दिनों इसी ठेके के पास हुई हत्या ने पुराने घाव को फिर हरा कर दिया। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया। पांच दिन से जारी अनशन को पुलिस ने जबरन हटाया, लेकिन लोगों के मन में असंतोष और भी गहरा हो गया। सवाल अब केवल एक दुकान का नहीं, बल्कि शासन की प्राथमिकताओं का है — क्या धार्मिक भावना और सामाजिक संतुलन राजस्व से नीचे रखे जाएंगे?
आबकारी विभाग का तर्क है कि यह ठेका वैध है और सरकार को राजस्व की आवश्यकता होती है। यह सच है — किसी भी राज्य की नीतियाँ आर्थिक मजबूती के बिना नहीं चल सकतीं। मगर यह भी उतना ही सच है कि धर्म, संस्कृति और लोक-भावना के बिना समाज का अस्तित्व अधूरा है। सरकार को यह समझना होगा कि “राजस्व” और “मर्यादा” में से प्राथमिकता किसे देनी है।

पूर्व विधायक ओम गोपाल रावत का कथन — “देवभूमि में शराब बिकवाने से बड़ा पाप और क्या होगा?” — केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि उस जन चेतना की पुकार है, जो ऋषिकेश के हर घाट, हर मठ, हर योगाश्रम में गूंज रही है। यह आंदोलन भले ही कुछ लोगों का दिखे, पर यह आस्था के सम्मान का प्रश्न है

ऋषिकेश केवल एक नगर नहीं — यह विश्व की योग राजधानी है। यहां विदेशी पर्यटक शांति और संयम का संदेश लेकर लौटते हैं। पर जब गंगा के किनारे शराब की दुकान खुलेगी, तो यह संदेश क्या रहेगा? क्या हम आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाना चाहते हैं कि आर्थिक लाभ, सांस्कृतिक अस्मिता से ऊपर है?
अब वक्त आ गया है कि राज्य सरकार शराब नीति की पुनर्समीक्षा करे। धार्मिक और आध्यात्मिक नगरों के लिए विशेष प्रावधान हों। यदि हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे स्थानों में शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध है, तो उसके आसपास के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी यह भावना लागू होनी चाहिए। यह केवल नीति का सवाल नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है।
देवभूमि की पहचान उसकी तपोभूमि, संस्कार और शुद्धता में है। इन पवित्र स्थानों की मर्यादा बनाए रखना शासन और समाज दोनों का दायित्व है। विकास तभी सार्थक है जब वह हमारी आस्था, हमारी संस्कृति और हमारी आत्मा के साथ खड़ा हो — उसके विपरीत नहीं।

राजस्व की गिनती से बड़ी होती है “आस्था की कीमत” — और वह कीमत देवभूमि को हर हाल में बचानी होगी।



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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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