उत्तराखंड का गांधी- इंद्रमणि बडोनी : एक स्मरण

@सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
आज लोक संस्कृति दिवस है। भला कौन उत्तराखंडी होगा जो ‘उत्तराखंड के गांधी’ स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी का स्मरण न करता हो।
सन 1975 में सर्वप्रथम इंद्रमणि बडोनी जी को देखा था। उनके पहनावे, भाव-भंगिमा और वाणी ने मेरे किशोर मस्तिष्क में अमित छाप छोटी। उसके बाद पुरानी टिहरी में जब बडोनी जी आते थे तो अनायास ही उनके दर्शन करने का मन आल्हादित हो जाता था। क्या करिश्मा था ! उनके व्यक्तित्व में, शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।
समय के साथ ही इंद्रमणि बडोनी जी के बारे में जानने के रुचि बढ़ती गई। सन 1975- 76 में रा इ का पुजारगांव (सकलाना) में एक नए गुरु जी आए थे। उनके साथ गंगा प्रसाद, अनुसूया प्रसाद और मंत्री प्रसाद तीन किशोर भी पढ़ने के लिए आए थे। सहपाठी वर्ग से बडोनी जी के बारे में सम्यक जानकारी प्राप्त हुई। सन 1977- 78 में अखोड़ी गांव के हमारे गुरु जी आदरणीय महावीर प्रसाद बडोनी जी विद्यालय में आए।वे स्वर्गीय बडोनी जी के परिवारजन थे। इसलिए उस महामानव के बारे में जानने की दिलचस्पी बढ़ती गई। सन 1983 में पुरानी टिहरी के प्रदर्शनी मैदान में बडोनी जी की नृत्य नाटिका “मलेथा की गूल” का मंचन देखकर अत्यंत अभीभूत हुआ।
छात्र जीवन में पुरानी टिहरी से लेकर डी ए वी पीजी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान स्वर्गीय बडोनी जी के विचारों का कायल रहा। शायद ही मैं जीवन में किसी महापुरुष से इतना प्रभावित हुआ हूंगा जितना कि स्वर्गीय इंद्रमणी बडोनी जी से हुआ। नब्बे के दशक में जब लोकसभा चुनाव में स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े (चुनाव चिन्ह शेर) तो उनका खुला समर्थन रहा। राजकीय सेवा में आने के बाद भी समय-समय पर बडोनी जी के विचारों से प्रभावित रहा।
सानू 1988-89 में मेरे छोटे ससुर जी(एम डी बहुगुणा,एडवोकेट) इंद्रमणि बडोनी जी के बहुत करीबी साथी थे। पुरानी टिहरी में उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में जब बडोनी जी का भाषण होता था तो समां बंध जाती थी। विपक्षी दलों के लोग भी बड़ी संख्या में उपस्थित होकर उन्हें सुनते थे।
वक्त गुजरता गया। उत्तराखंड का गांधी अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से सब की जुबान पर छाने लगा। बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्तित्व उत्तराखंड का महानायक के रूप में उभरा। लोक कलाकार, समाज सेवी, बडोनी जी अब राजनीतिक रूप से भी राष्ट्रीय पहचान बन गए। वे राष्ट्रीय विचारधारा के बावजूद क्षेत्रीय विकास और कल्याण के केंद्र बन गए। उत्तराखंड क्रांति दल के नायक बनकर अपनी स्वतंत्र पहचान बन गये। गांधीवादी, सत्य और अहिंसा का पुजारी इंद्रमणि बडोनी उत्तराखंड के आदर्श बन गए लेकिन विद्रुप राजनीति और षडयंत्रों के जनक कुछ राजनीतिज्ञ अपनी राजनीतिक गिरती साख के कारण बडोनी जी को भी नीचा दिखाने की कोशिश करने लगे। महामानव पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा वे नफा- नुकसान के गणित को ध्यान में रखे बगैर नैसर्गिक उत्तराखंड के उत्थान हेतु कार्य करते रहे और जनता का दिल जीतते रहे।
2 अगस्त सन 1994 को इंद्रमणि बडोनी पौड़ी प्रेक्षागृह में उत्तराखंड क्रांति दल के नायक के रूप में, उत्तराखंड पर थोपे गये 27% आरक्षण के विरुद्ध आमरण आसन पर बैठ गये। मैं उसे समय बडियार गढ स्थित इंटर कॉलेज में प्रवक्ता था। मुस्मोला बडियारगढ़ के 84 वर्ष से रतनमणी भट्ट जी भी उनके साथ आमरण पर बैठे थे। इसलिए दिलचस्पी बढ़ गई थी।
बडोनी जी के इस आमरण अनशन के फलस्वरुप कई राजनीतिक दलों के नेताओं को अपनी जमीन खिसकती दिखाई दी। कट्टर उत्तराखंड राज्य विरोधी अपने को असहज महसूस करने लगे। मसूरी, खटीमा कांड हुए। समस्त राज्य कर्मचारी/ शिक्षक सड़क पर आ गए। उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध जन विद्रोह हो गया। प्रवासी उत्तराखंडी भी वांछित सहयोग देने लगे। दुर्भाग्य से 02 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर मुजफ्फरनगर कांड की काली छाया पड़ी। उत्तराखंड राज्य विरोधी भी तत्कालीन सरकार के विरुद्ध हो गए। अब यह आंदोलन नहीं बल्कि जन क्रांति के रूप में अस्तित्व में आ चुका था।
केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकारें जाग गई। उत्तराखंड राज्य के निर्माण की नींव का शिलान्यास हुआ। स्व. इंद्रमणि बडोनी का बोया हुआ बीज अंकुरित होकर नई राजनीतिक इकाई के रूप में अस्तित्व में आया। 27वें प्रदेश उत्तराखंड का जन्म हुआ लेकिन तब तक कुशल और निपुण राजनीतिज्ञ धुरंधर आगे आ चुके थे। सत्ता के गलियारों में पैठ बढ़ाने लगे। राज्य निर्माण के पश्चात उत्तराखंड क्रांति दल कई घटकों में विभक्त होने लगा। सबके निहित स्वार्थ सामने आने लगे। स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी जी का बलिदान, त्याग और विचारधारा सत्ता के सिंहासन को छू न सकी। अब वह संत, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भांति असहज महसूस करने लगा और जीवन के सतत संघर्षों से जूझता हुआ, संत नगरी ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में रहने लगा। धर्मपत्नी सुरजी की मृत्यु के पश्चात पूर्ण बैरागी की तरह शांति के खोज में निमग्न 18 अगस्त 1999 को अनंत धाम की ओर चला गया।
शत शत नमन।


