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पहल: नई टिहरी में इंद्रमणि बड़ोनी स्मृति वाटिका

पहल: नई टिहरी में इंद्रमणि बड़ोनी स्मृति वाटिका
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विक्रम बिष्ट

गुरुवार को नई टिहरी में इंद्रमणि बडोनी स्मृति वाटिका का लोकार्पण किया किया गया । इस वाटिका की स्थापना टिहरी पालिका परिषद ने की है। यूं नगर के प्रवेश द्वार पर वृक्षारोपण का यह कार्यक्रम वार्षिक सरकारी त्यौहार ‘हरेला’ का हिस्सा था। नया कुछ है तो इससे उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बडोनी की याद जुड़ना। उम्मीद है कि पालिका की अध्यक्ष सीमा कृशाली और उनके पति आकाश कृशाली की एकता टीमें स्वर्गीय बड़ोनी के सपनों की तरह इस पहल को मुरझाने नहीं देंगी। 

वर्षों से इंद्रमणि बडोनी की स्मृति को जिलाए रखने वाले लोग लोकानंद डंगवाल ने इस अवसर पर ठीक ही कहा उत्तराखंड बना, बदला क्या। पहले 19 विधायक लखनऊ जाते थे अब 70 को रोजगार मिल गया । बस महत्वपूर्ण लोगों की संख्या बेरोजगारों की तरह ही बढ़ रही है।

वर्तमान युवा पीढ़ी के कितने लोग  इंद्रमणि बडोनी के नाम से परिचित होंगे ? राजनीति के छोटे बड़े खिलाड़ियों को तो इस नाम से डर लगेगा ,जब स्वर्गीय बडोनी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चाएं होंगी।

संसदीय राजनीति की बात करें तो इंद्रमणि बडोनी टिहरी गढ़वाल की देवप्रयाग सीट से उत्तर प्रदेश में तीन बार विधायक रहे । जनता पार्टी की बनारसीदास सरकार में पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे । 1967 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए तो जल्दी ही एहसास हो गया कि विशाल उत्तर प्रदेश में रहते पहाड़ का भला नहीं होने वाला। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए सक्रिय हो गये।

कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे, माकपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे पी सी जोशी, मानवेंद्र शाह, ऋषि बल्लभ  सुंद्रियाल , प्रताप सिंह नेगी , नरेंद्र सिंह बिष्ट, लक्ष्मण सिंह अधिकारी, चंद्र सिंह रावत, दया किशन पांडे , डीडी बंद , जसवंत सिंह बिष्ट जैसे स्वतंत्रता से लेकर उत्तराखंड आंदोलन के अमर सेनानियों के सपनों के लिए ठोस जमीन तैयार करने वाले इंद्रमणि बडोनी के अपने गृह जनपद के मुख्यालय नई टिहरी में दो दशक बाद किसी को याद आई तो टिहरी बाजार में उनके मुर्दाबाद के नारे लगाने वाले सरकारी आंदोलनकारियों को भला इंद्रमणि बडोनी की याद कैसे आती ? उनको तो जीते जी भुला दिया गया । 

अगस्त 1999 के तीसरे सप्ताह में जब बडोनी जी की सांसें थमने लगी थीं और उत्तराखंड में यह खबर फैल गई थी, तब टिहरी गढ़वाल की जागरूक स्थानीय खुफिया एजेंसी को भी इसकी भनक लगी। तब के डीएम साहब को पता चला कि डायलिसिस पर जी रहे इंद्रमणि बडोनी के इलाज के लिए मुख्यमंत्री द्वारा भेजी गई धनराशि तीन सप्ताह से कोषागार में पड़ी है।

2 अगस्त 1994 को पौड़ी में बड़ोनी जब उत्तराखंड के लिए अनशन पर बैठे तो स्थापित नेताओं को अहसास नहीं था कि एक भूचाल उनके पैरों तले जमीन को दरकाने वाला है। तब कहीं दूर विदेश से आवाज आई ‘महात्मा गांधी को जीवित जीवंत रूप से देखना हो तो उत्तराखंड में देखो।’

हमारे आज के नेताओं को मार्टिन लूथर किंग के देश अमेरिका जाकर महात्मा गांधी की महानता का एहसास होता है। महात्मा गांधी को समझना है तो इंद्रमणि बडोनी की याद राह दिखाती है।


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Govind Pundir

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