अतीत की खिड़की से
नौ अगस्त उत्तराखंड राज्य का भी मील का पत्थर
विक्रम बिष्ट:
9 अगस्त का उत्तराखंड के लिए अतिरिक्त महत्व है। सन 1942 में इसी दिन महात्मा गांधी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा था। उत्तराखंड के लोगों का उसमें खासा योगदान रहा था।
9 अगस्त 1987 को पृथक पर्वतीय राज्य की मांग को लेकर उत्तराखंड में अभूतपूर्व बंद चक्का जाम रहा था। इसका आह्वान पृथक राज्य के लिए संघर्ष के उद्देश्य से गठित उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) ने किया था। इससे पूर्व यूकेडी ने 10 नवंबर 1986 में नैनीताल और पौड़ी में 9 मार्च 1987 को मंडल मुख्यालयों पर जबरदस्त प्रदर्शन कर राज्य निर्माण के पक्ष में बढ़ रही जनभावनाओं को अभिव्यक्ति दी थी । इसे राष्ट्रीय मीडिया ने काफी महत्व दिया। सत्तारूढ़ कांग्रेस सहित अन्य दलों और नेताओं में हलचल हुई। हिमपुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा ने पौड़ी प्रदर्शन से पूर्व अपने बयान में इस मांग को नकार दिया था ।
9 अगस्त को पर्वतीय क्षेत्रों में सम्पूर्ण बंद और चक्का जाम रहा। देहरादून जैसे बड़े शहर में भी इसे व्यापक समर्थन मिला । यूकेडी नेताओं, कार्यकर्ताओं ने इसके लिए अथक अभियान चलाया था ।
हमारे जिम्मे टिहरी था। टिहरी की छात्र राजनीति में तब दो प्रभावी गुट थे। एक की अगुवाई विजय सिंह पंवार, हरीश थपलियाल करते थे। दूसरा छात्रसंघ अध्यक्ष मंत्री प्रसाद नैथानी, जिसका नेतृत्व महावीर उनियाल आदि करते थे। यूकेड़ी की छात्र शाखा यूएसएफ का गठन हो चुका था। हमें दोनों का साथ चाहिए था । दोनों का साथ मिला। ऋषिकेश, उत्तरकाशी मार्ग हर महावीर उनियाल और श्रीनगर घनसाली मार्ग पर हरीश थपलियाल ने कमान संभाली । व्यापारी समुदाय से हम हर दुकान पर 8 अगस्त को जाकर समर्थन का आश्वासन प्राप्त कर चुके थे।
टिहरी शहर में 9 अगस्त को जनता कर्फ्यू जैसा माहौल रहा । इससे पूर्व भी कई आंदोलन, बंद देखे । उस दिन चाय पान के खोखे भी पूर्ण रूप से बंद थे। ऐसे अवसर पर खाली समय में दुकानों के बाहर रखे तख़्तों और ठेलियों पर कैरम, ताश खेलते लोग देखे जाते थे। उस दिन ऐसा नजारा नहीं था । आम जनता का विश्वास हो तो बड़ी जीत आसानी से हासिल हो जाती है।