और न्याय मिलता भी कैसे ?
विक्रम बिष्ट*
गढ़ निनाद न्यूज़* 4 अक्टूबर 2020
नई टिहरी। अंनत कुमार सिंह तब मुजफ्फरनगर के डीएम थे। सिंह का बयान कि ‘अकेली महिला रात में खेत में होगी तो बलात्कार होगा।’ काफी चर्चित और निंदित हुआ था। कुछ वर्ष बाद राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अनंत कुमार सिंह को अपना प्रमुख सचिव बनाया दिया था । इस पर राज्य आंदोलनकारियों की आपत्तियों का पर कौन ध्यान देता। कांग्रेस तो नैतिकता ही खो चुकी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने मुजफ्फरनगर कांड की जांच शुरू की । इस जांच को रोकने के लिए संबंधित प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों ने हाथ-पांव मारने शुरू किए।
बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार और खुद को फंसने से बचाने के प्रयासों में जुटे अधिकारियों ने सीबीआई जांच से रोकने के लिए उत्तराखंड आंदोलनकारियों को उपद्रवी साबित करने की कोशिशें की थीं,ताकि सुप्रीम कोर्ट से स्थगन आदेश मिल जाय। प्रदेश सरकार की इस कोशिश में मदद के लिए जिला प्रशासन ने शामली के पुलिस क्षेत्रीय अधिकारी जीपी नैनवाल को आंदोलनकारियों को उपद्रवी ठहराने के लिए तैयार दस्तावेजों के साथ नई दिल्ली भेजा था।
बताया जाता है कि पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के गांव के लोगों को मुंह बंद रखने या पुलिस प्रशासन के पक्ष में डराना धमकाना शुरू कर दिया था। सीबीआई टीम के श्रीनगर और गोपेश्वर पहुंचने से पहले कई दरोगाओं को सादे कपड़ों में यहां भेज दिया था। बताते हैं वे तब सीबीआई टीम के सदस्य बनकर पहुंचे थे। उन्होंने कुछ गवाहों को समझाया कि सरकार के खिलाफ बयान देना उनके लिए हितकारी नहीं होगा। सीबीआई यहां हमेशा बैठी नहीं रहेगी। प्रशासन तुमको परेशान करेगा।
नवभारत टाइम्स की 18 अक्टूबर की रिपोर्टिंग में यह भी उल्लेख किया गया है कि सीबीआई अधिकारियों को जब स्थानीय लोगों ने यह जानकारी दी तो डीआईजी ने दरोगा विमल गुणवंत और बेनी सिंह को तत्काल गढ़वाल छोड़ने का आदेश दिया। पूरे देश को उस शर्मनाक कांड से कलंकित करने के लिए डीआईजी बुआ सिंह को यहां खलनायक के तौर पर याद किया जाता है । पड़ोसी जिले सहारनपुर के प्रशासन की ओर से भेजी गई रिपोर्ट से यह साफ होता है कि मुज्जफरनगर कांड बाकायदा सरकार के लोगों की साजिश थी।। क्रमशः…..