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मैती आंदोलन ने टिहरी की स्मृति में किया वृक्षारोपण

मैती आंदोलन ने टिहरी की स्मृति में किया वृक्षारोपण
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गढ़ निनाद समाचार* 29 दिसम्बर 2020

नई टिहरी। 28 दिसम्बर को टिहरी के जन्म बार मनाने बादशाहीथौल स्थित केन्द्रीय हेनब गढवाल विश्वविद्यालय के स्वामी रामतीर्थ परिसर पहुँचे मैती संस्था के कार्यकर्ताओं ने टिहरी लोकमाटी  स्मृति में वृक्षारोपण किया। पुरानी टिहरी की 35 ऐतिहासिक मिट्टियों से पौधों का गंगाजल से अभिषेक करके परिसर में रोपा गया।

बता दें कि वर्ष 2001 में टिहरी डूबने से पहले 35 ऐतिहासिक मिट्टियों को बादशाहीथौल स्थित महाविद्यालय में गड्ढे बनाकर प्रतिस्थापित किया गया था और उनमें पेड़ लगाये गये थे। इसी कड़ी में मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत जी एवम अन्य संस्थाओं के द्वारा बादशाहीथौल परिसर में टिहरी लोकमाटी स्मृति में 35 ऐतिहासिक जगहों की मिट्टी से पौधा रोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भूतपूर्व वाइस एडमिरल भारत सरकार श्री ओमप्रकाश राणा ने कहा कि हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक पेड़ पौधों का रोपण करना चाहिए।जिससे कि हमारा पर्यावरण स्वच्छ रहे और हम स्वस्थ रह सकें।

महाविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर वौराई जी के संयोजकत्व में मैती, सैर सलीका, स्पर्श गंगा, नियोविजन फाउन्डेशन, महाविद्यालय परिवार,  वन विभाग,स्थानीय लोगों ने प्रतिभाग किया।

इस अवसर पर पूर्व उप महानिदेशक आई सी एफ आर ई डा वी आर एस रावत, पूर्व एस पी श्री मदन सिंह फर्सवाण, गजेन्द्र रमोला ,डा0 सर्वेश उनियाल तथा मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम में परिसर निदेशक डॉ0 ए0ए0बौड़ाई ने सभी आगन्तुक अथितियों का स्वागत किया तथा अपने विचार रखे।

आपको अवगत करा दें कि इतिहासकार महिपाल नेगी जी का कहना है कि टिहरी शहर की जन्म कुंडली के अनुसार पुरानी टिहरी का जन्म 30 दिसम्बर को होना बताया गया है। हां पुरानी टिहरी और कुछ समय तक नई टिहरी में टिहरी के जन्मदिन पर 28 से 30 दिसम्बर तक कई कार्यक्रम हुआ करते थे। इसलिए कुछ लोग 28 दिसम्बर को ही टिहरी का जन्मदिन मनाते आ रहे हैं। 

30 दिसम्बर है टिहरी का जन्मदिन

आपको बता दें कि टिहरी रियासत के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने दिसम्बर 1815 को टिहरी नगर की नींव रखी थी। टिहरी शहर के झील में समाने के बाद टिहरी से जुड़े लोगों का लगाव आज भी बरकरार है। यही कारण है कि 28 दिसम्बर ही सही टिहरी की संस्कृति को जिंदा रखने के प्रयास जारी हैं। 


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Govind Pundir

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