नई टिहरी एक “मिनी स्विट्जरलैंड” उदास सा क्यों है
Garh Ninad Samachar.
विक्रम बिष्ट*
‘नई टिहरी को भारत में “मिनी स्विट्जरलैंड” बताने, प्रचारित करने वाले लगता है नए काम धंधे की तलाश में हैं।’
‘नई टिहरी को लेकर दो स्तरों पर भूले हुई हैं।
पहली, जगह चयन की।
बड़ी भूलें इसके निर्माण के दौरान।’ नई टिहरी महानगर प्लान में इसके विस्तार विकास की काफी गुंजाइश रखी गई थी। लेकिन एक निर्माण एजेंसी टीएसडीसी को पुनर्वास का जिम्मा दिया गया तो उसने कम खर्च में लीपापोती के साथ काम करने वाले ठेकेदार का रास्ता अपनाया।
मास्टर प्लान को जमीन पर उतारने के लिए जो जमीन चाहिए थी उसके साथ पूरी महायोजना के साथ बड़े पैमाने पर कतर ब्योंत की गई।
टिहरी शहर चारों तरफ गांवों से घिरा हुआ था। गढ़वाल के कई इलाकों के बीच रास्ते पर था। चार धाम यात्रा के दिनों में चहल पहल रहती थी। इसलिए व्यापार और रोजगार की गुंजाइश थी। गढ़वाल विश्वविद्यालय का टिहरी परिसर रौनक बढ़ाता था, जिसे बनवास दिया गया है। नरेंद्र महिला विद्यालय भागीरथीपुरम में स्थापित किया गया था।
टिहरी शहर में आम का ही बगवान नहीं था, पूरा नगर हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित था। नई टिहरी हरियाली के मामले में इसके निर्माताओं और रख वालों के दिमाग में कंगाली का मुंह बोलता उदाहरण है। डेढ़ दशक पहले एक सरकारी समिति की रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है।
जहां बहुप्रजातीय फलदार वृक्ष, फुलवारियां होनी चाहिए थी, भू भक्षियों ने सरकारी अमले से मिलीभगत से जमीनें निगल ली हैं।
मिनी स्विट्जरलैंड का रास्ता बचा ही कहां है, जब गलियां तक कब्जाई जा रही हैं। – जारी