काश टिहरी की प्रतिकृति ही बना लेते!
विक्रम बिष्ट
नई टिहरी। पुनर्वास और पर्यावरण जैसे संवेदनशील जटिल मसलों का हल तो कोई पहुंचा हुआ त्यागी महात्मा ही कर सकता है। टीएचडीसी ने इस अनुष्ठान का जिम्मा सोच समझ कर ही दिया था। बताते हैं तब बांध परियोजना के द्वारा वृक्षारोपण के लिए प्रति गढ्ढा 18 रुपये खर्च किया गया । बेचारा वन विभाग 63 पैसे पर अटका रहा।
जाहिर है कि 18 रुपये वाला वृक्षारोपण खूब फल फूल रहा है। नई टिहरी, भागीरथीपुरम, झील के चहुं ओर लकदक हरियाली की खुशहाली में कहीं खो ना जाएं इसलिए पर्यटक अपेक्षा से कम आ रहे हैं शायद।
पर्यटन से खुशहाली पर जुरांग कंसल्टेंट्स में गहन शोध किया था और 2019 में टिहरी बांध क्षेत्र में 82 लाख पर्यटक आने की भविष्यवाणी की। उम्मीद है वे सभी खुशी-खुशी लौटे होंगे। 2020 में कोरोना का मुरदा न मरा होता तो 89 लाख पर्यटक टाइप लोग आते और इस वर्ष 95 लाख।
अब इस भविष्यवाणी के लिए सरकार ने 101 या 501 रुपये की दक्षिणा तो नहीं दी होगी। कितनी दी होगी , यह पूछने का हक आपको नहीं है। जिनको है वे तो तर ही गए होंगे।
अभी 1200 करोड़ की महायोजना और बन रही है। आम जनता की नजर नहीं लगनी चाहिए। इसलिए ज्यादा सावधानी बरतनी जरूरी है। खैर मसला जनता और जनार्दन के बीच का है, हम क्या कर सकते हैं।
हमारा तो रोना यही है कि स्विट्जरलैंड न सही टिहरी की प्रतिकृति ही बना लेते 5-7 एकड़ में। जहां लोगों को बताया जाता है कि यह है वह टिहरी जिसने देश के विकास के लिए जल समाधि ली है व्यावहारिक वेदांत के प्रणेता स्वामी रामतीर्थ ने भी जल समाधि के लिए इसे उपयुक्त समझा था। ऐसे थी टिहरी जेल की वह काल कोठरी जहां मनुष्य के स्वाभाविक अधिकार- आजादी के लिए श्रीदेव सुमन ने अपने उपवास के 84वें दिन प्राण त्याग दिए थे।
ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की दासता का स्मारक ही सही लेकिन बेजोड़ कारीगरी का नमूना घंटाघर जिसकी घड़ी चुरा ली गई थी और उसका मुकदमा भारतीय न्याय प्रणाली का अजूबा बना हुआ है।
यह है टिहरी का राजमहल जो सन 1904 में बिजली के लट्टुओं से जगमगाने लगा था और टिहरी को देश में बिजली वाले दूसरे शहर होने का गौरव हासिल हुआ था। रानी गुलेरिया का स्थापित बद्रीनाथ मंदिर और यह है भागीरथी- भिलंगना का संगम गणेश प्रयाग यानी गंगा की दो धाराओं का शुरुआती मिलन स्थल। यह है वह दुकान जिसकी सिंगोरी की खुशबू दूर-दूर तक महकती थी। यहां मिलती है टिहरी की प्रसिद्ध नथ। हर चुनाव में सपने दिखाने वालों ने कभी यह सपना देखा होगा! नहीं तो एक स्मारक उस राजनीति का भी बनना ही चाहिए। जारी