अणुव्रत भवन तुलसी सभागार में दीक्षार्थी अभिनन्दन समारोह सम्पन्न
रागभाव व आत्मानुभाव दोनों एक साथ नही होते — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
चंडीगढ़ ब्यूरो। अणुव्रत भवन सैक्टर 24 में मुमुक्षु कुमारी सुरभि जैन दीक्षार्थी अभिनन्दन समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि रागभाव व आत्मानुभाव दोनों एक साथ नही होते। मिथ्या दृष्टि जीव भले ही दीक्षा ले लें। संन्यास पथ पर आ जाएं, तब भी उसके जीवन में रागभाव ही प्रधान होता है। वह निरंतर अपनी सेवा व्यवस्था के साधनों को जुटाने का प्रयास करता है।
रसिक महाराज ने कहा कि आचार्य भगवान कहते हैं भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता। पुण्य होगा तो अंजान व्यक्ति भी आकर आपकी सेवा व्यवस्था में जुट जाते हैं। जंगल में भी मंगल हो जाता है, लेकिन जब पुण्य नहीं होता तो मंगल में भी जंगल जैसा प्रतिकूल वातावरण नजर आने लगता है। कुछ काम ऐसे होते हैं जो बनाए नहीं बल्कि स्वयं ही बन जाते हैं। इसे कहते हैं भाग्य। भाग्य, पुण्य आता कहां से है तो अपनी सम्यक् साधना, चर्या, क्रिया, धार्मिक कार्यों से ही पुण्य की वृद्धि होती है। इसलिए हमें निरंतर संसार के राग को छोड़कर धर्मानुराग की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि जो जैसा करता है उसे वैसा ही भोगना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति मन का दास बना हुआ है। मन के अनुसार ही अपने सारे काम करता है। मन के कारण व्यक्ति संसार में भटक रहा है, क्योंकि आत्मा का विनाश करने वाले पचेद्रिंयों के विषय है और विषय मन के द्वारा होते हैं। जो मन को मुखिया मानते हैं। वह चाहे तो इसी मन के द्वारा अच्छे कार्य कर सकते हैं। चाहे इसी मन के द्वारा किसी की निंदा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति संकलेष में आकर निंदा करने लगता है। नाराज होना व्यक्ति का स्वभाव है, जो किसी न किसी बात लेकर नाराज हो जाता है। यह संकलेष के कारण होता है। आज के समय में व्यक्ति स्वयं की प्रशंसा सुनना पसंद करता है। यदि अपने जीवन को बदलना है तो मन को धर्म के मार्ग पर लगाओ जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि सबसे बढ़ी शक्ति धन की नहीं एकता संगठन की होती है। उन्नाति, विकास का सबसे बड़ा रास्ता है एकता। सगंठन एकता में बड़ी ताकत होती है जो व्यक्ति एक से दूसरों को जोड़ता जाता है वह एक दिन परिवार, नगर, देश और राष्ट्र के निर्माण में भी सफल हो जाता है। हम देश राष्ट्र तक जब पहुंचे। आज तो हम अपने घर अपने परिवार अपने कुटुम्ब में एकता का शंखनाद करें।
उन्होंने कहा कि वह तभी होगा जब हम एक से एक जुड़कर चलें, आपके घर में चार सदस्य हैं तो चारों में खुशी का संचार करें। भले चार सदस्यों में मात्र आप ही सारा कार्य करते हों, मेहनत करते हों पर इसका मतलब यह नहीं कि आप दूसरो को उलाहना देने लगे, ताने कसने लगें।