बुधू : जागो-उक्रांद-जागो, सबको बाहर निकालो
उत्तराखंड के एकमात्र क्षेत्रीय दल उक्रांद के भड़ नेता सो रहे हैं। जाग रहे होते तो रोज पांच सात सक्रिय कार्यकर्ताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में निष्कासित कर होते। उनके आत्ममुग्ध निर्णय की खबरें प्रसारित होती रहती। कहते हैं कि अंधे के गले में फूल माला डालो तो वह सांप समझ कर उसे फेंक डालता है। उक्रांद नेताओं पर यह बात फिट बैठती है, जनता ने जब-जब उक्रांद के गले में मालाएं डालने की कोशिशें की, उक्रांद नेताओं ने विलम्ब किए बिना झटका दे दिया। जनता को साथ लाने वाले नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसको कहते हैं अनुशासन।
1994 में जनता उक्रांद के पीछे लामबंद हो रही थी। क्या जबरदस्ती है, उक्रांद नेताओं को यह अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं हुई। तुरन्त उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया। जो नेता विधायक जनता के भय से मुंह छुपा रहे थे उनको सिर माथे पर बिठाया। जिनको कोई नहीं जानता, पहचानता, मानता था उनको नेता घोषित कर दिया। इधर लोग नरसिंह राव के खिलाफ नारे लगा रहे थे । उक्रांद नेता राव के गुर्गों के गुर्गों को समिति में ठूंस रहे थे।
गुर्गों के गुर्गों ने नेता बनने का भरपुर आनंद उठाते हुए 1996 के लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करवाकर उक्रांद को उत्तराखंड की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनने के महापाप से बचा लिया। एक साथ दोहरी बफादारी। उक्रांद को महापाप से बचाया। कांग्रेस को उत्तराखंड से विलुप्त होने से बचाया। इस चमत्कार का भरपूर लाभ मिला, आज भी मलाई है।
जनता का मोह उक्रांद से फिर भी पूरी तरह भंग नहीं हुआ। जहां-तहां उक्रांद नेताओं को चुनाव जिताती रही। उक्रांद नेताओं को यह अनुशासनहीनता कभी रास नहीं आई। जीते हुओं को तडातड़ निकालते रहे। इस महान कार्य में उत्कांद नेताओं को पसीना भी बहाना पड़ा होगा। शायद इसलिए सुस्ता रहे हैं। रवांई, घनसाली,कर्णप्रयाग जैसे दूरदराज के इलाकों में उक्रांद के कार्यकर्ता हुंकार भर-भर कर अनुशासनहीनता कर रहे हैं। अभी तक इस अनुशासनहीनता के लिए एक भी सक्रिय कार्यकर्ता को बाहर नहीं निकाला गया है। “जागो उक्रांद नेता जागो । चुनाव नजदीक आ रहे हैं, कहीं बहकावे में आकर जनता का उक्रांद मोह जाग गया तो? सबको बाहर कर दो।
शुभकामनाएं । आपका ‘बुधू ।