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इगास दीवाली पर नई टिहरी में स्थानीय लोगों ने सामूहिक भैलो खेलकर एक दूसरे को बधाई दी

इगास दीवाली पर नई टिहरी में स्थानीय लोगों ने सामूहिक भैलो खेलकर एक दूसरे को बधाई दी
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नई टिहरी। बूढ़ी दीवाली अर्थात इगास पर नई टिहरी के 7 डी स्थित योगा पार्क में स्थानीय लोगों ने जमकर भैले खेले और ढ़ोल दमाऊं की थाप पर खूब नाचे, साथ ही उड़द दाल के पकौड़े का आनन्द भी लिया। एक दूसरे को इगास की बधाई दी।

इगास बग्वाल के मौके बौराड़ी योग पार्क में राज्य आंदोलनकारी मंच, नागरिक मंच, त्रिहरि, भारत स्वाभिमान, राज विद्या केंद्र, वनाधिकार आंदोलन, लेक व्यू रिजॉर्ट और एपीजे अब्दुल विचार मंच की पहल पर इगास बग्वाल का सामूहिक आयोजन किया गया। स्थानीय लोगों ने भैला खेलकर इगास अर्थात बूढ़ी दिवाली का आंनद लिया और 111 दीपमाला के साथ उड़द की दाल के पकोड़े खाये और  ढोल-दमाऊं की थाप पर खूब नाचे।

ढ़ोल दमाऊं वादकों को सम्मानित करते हुए

वरिष्ठ पत्रकार और संस्कृति कर्मी महिपाल सिंह नेगी, लोक गायक गोपाल भाई और सर्वोदयी नेता व पत्रकार साब सिंह सजवाण ने इस मौके पर इगास बग्वाल इतिहास पर चर्चा की। महिपाल नेगी ने विशेषकर बच्चों को वीर माधो सिंह भंडारी के बारे में जानकारी दी। 

इस मौके पर कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक गायक

लोक गायक गोपाल भाई ने वीर भड़ माधो सिंह, उत्तराखंड के 52 गढ़, राजुली-मालूशाही की विस्तृत कहानी सुनाई।  उन्होंनेराजुली- मालूशाही की कहानी व पंवाडे सुनाए। जिसका लोगों ने खूब लुत्फ उठाया।

रंगकर्मी व वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी ने इगास बग्वाल का सम्बंध वीर भड़ माधो सिंह भंडारी से बताते हुए कहा कि माधो सिंह भंडारी 17वीं शताब्दी में गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ (योद्धा) हुए। माधो सिंह मलेथा गांव के थे। उस दौरान श्रीनगर गढ़वाल के राजाओं की राजधानी हुआ करती थी।  एक बार गढ़वाल और तिब्बत के बीच युद्ध हुआ । राजा की फौज परास्त हो गयी तो उन्होंने भड़ माधो सिंह भंडारी को फ़ौज के साथ वहां भेज दिया। वीर माधो सिंह भंडारी तिब्बत युद्ध में इतने उलझ गए कि दिवाली के समय तक वापस श्रीनगर गढ़वाल नहीं पहुंच पाए, जिससे राजा और प्रजा चिंतित हो गई। आशंका थी कि कहीं वह युद्ध में मारे न गए हों। उस साल दिवाली नहीं मनाई गई। 

       दिवाली के लगभग 6  दिन बाद जब माधो सिंह की युद्ध विजय और सुरक्षित होने की खबर श्रीनगर गढ़वाल पहुंची तो राजा की सहमति पर एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा हुई। इसे इगास बग्वाल नाम दिया गया। तब से इगास बग्वाल निरंतर मनाई जाती है। अब तो गढ़वाल में यह लोक पर्व भी बन गया है। अभी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी ने इस दिन अवकाश की घोषणा भी कर दी। 

इगास भी दीवाली की तरह ही मनाई जाती है। उड़द के पकोड़े, दियों की रोशनी, भैला और मंडाण आदि का आयोजन किया जाता है और लोग एक दूसरे को इगास की बधाई भी देते हैं।

हालांकि लोग आब भी इगास तो मनाते हैं, लेकिन इसका इतिहास और इसकी गाथा भूलते चले जा रहे हैं। इसी इतिहास को जिंदा रखने और नई पीढ़ी को इससे रूबरू कराने के लिए इस संघठनों ने बौराड़ी में इगास बग्वाल का भव्य आयोजन किया। उम्मीद है कि इस परंपरा आगे भी जारी रहेगी।

इगास के मौके पर नागरिक मंच के अध्यक्ष सुंदर लाल उनियाल, सचिव चंडी प्रसाद डबराल, कमल सिंह महर, देवेंद्र नौडियाल, कुलदीप पंवार, खेम सिंह चौहान, विजयपाल रावत, जीतराम भट्ट, समीर रतूड़ी, ज्योति प्रसाद भट्ट, यूएस नेगी, भगवान चंद रमोला, महावीर उनियाल, मुशर्रफ अली, मुर्तजा बेग, रागिनी भट्ट, राजपाल मिंया, जगजीत नेगी, सतीश चमोली, देवेंद्र चमियाल, त्रिलोक रमोला, लखवीर चौहान, उर्मिला महर, ममता उनियाल समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।


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Govind Pundir

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