राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को पहचानें – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
रायवाला, हरिद्वार। अन्तर्राष्ट्रीय ब्रह्मर्षि मिशन विराटनगर पिंजौर हरियाणा द्वारा दिवंगत संत बावरा जी महाराज की जयंती के अवसर पर ” राष्ट्र निर्माण में धर्म की भूमिका ” विषय पर विद्वत संगोष्ठी में वर्चुअल रुप से जुड़कर विचार व्यक्त करते हुए नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार के परमाध्यक्ष नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है। राष्ट्र जैसे छोटे से शब्द में विशाल असीमित और बहुआयामी अर्थ और कर्तव्यबोध का सार समाहित हैं। देश के प्रत्येक नागरिक को अपने राष्ट्र प्रगति के लिए आवश्यक होता है कि वह जिस दशा में है जिस परिस्थिति में है जहां है सकारात्मक सोच के साथ अपना योगदान दे। हमारे राष्ट्र का आदर हो तो इसमें जन्मे व्यक्ति को भी लोग आदरणीय कहेंगे। हमारा देश कभी सोने की चिडि़या कहा जाता था। फिरंगियों की नापाक नजरें इस ओर गई और कुटिल चालों के जरिए पहले व्यापार को ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में भारत आए। फिर उन्होंने धीरे-धीरे ऐसे लोगों की पहचान की जो राष्ट्र के प्रति गंभीर नहीं थे, लालची और पाखंडी थे। उन्हीं के द्वारा देश से गद्दारी कराई। नतीजा यह निकला कि हमारा राष्ट्र गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया।
अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित और स्वाभिमानियों की अंतर आत्मा में चेतना आई तथा अंग्रेजों के प्रति नफरत और तिरस्कार का वातावरण बना। कई राष्ट्रभक्त ऐसे थे जिनको न इतिहास में स्थान मिला और न ही प्रशंसा हासिल हो सकी। लेकिन अपने राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी निभाने में असहनीय यातनाएं झेलते रहे। अन्त में प्राणों को भी राष्ट्र के प्रति होम कर दिया। हम सभी का नैतिक दायित्व है कि हम अपने राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा के लिए मर मिटने को तैयार रहें। राष्ट्र निर्माण में अपनी योग्यता सिद्ध करें। हमें यह अनुभूति होनी चाहिए कि मैं ही राष्ट्र निर्माण के लिए उपयुक्त व्यक्ति हूं। हमारे द्वारा किए गए कार्य से ही राष्ट्र निर्माण में सहयोग होगा। हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। हमें शिक्षा का प्रसार-प्रचार, श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग, वैज्ञानिक सोच के साथ अग्रसर होना चाहिए।
युवा शक्ति को सही दिशा देने के लिए ऋषियों, बुद्धिजीवियों द्वारा सुझाए गए मार्ग पर चलने के लिए अपनी संतान को प्रेरित करना चाहिए। देश की सीमाओं पर अपने सपूतों को दृढ़ निश्चय के साथ भेजने वालों का भी हमें आदर करना होगा। हम नि¨श्चत हो कर रात्रि विश्राम करते हैं जबकि हमारे बीच से ही निकले वीर सपूत राष्ट्र प्रहरी के रूप में अपना जीवन दांव पर लगाए रहकर हमारे राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे सामने यदि कोई भी राष्ट्र को अपमानित करने की चेष्टा करता है, राष्ट्र की नैतिकता पर प्रश्न उठाता है, राष्ट्रीय क्षति को सहायता देता है, धर्म, भाषा और मान्यताओं के आधार पर हमें बांटने की घिनौनी कोशिश करता है तो हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम उसे मुंहतोड़ जबाब दें। व्यक्ति को अपनी संतान की शिक्षा, दीक्षा, निपुणता, दक्षता के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देना चाहिए। हम एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करें जिसमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी गई हो। नई पीढ़ी को अपने राष्ट्र भक्तों की जीवन शैली और उनके योगदान की जानकारी गंभीरता से दें।
आज का बालक कल का विद्यार्थी, कुशल चिकित्सक, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, इंजीनियर, शिक्षक, समाजसेवी, उद्योगपति, समर्पित नेता बन कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देगा। हमें इनके स्वास्थ्य तथा बौद्धिक विकास की ओर विशेष ध्यान देना होगा। इन्हीं में से अब्दुल कलाम, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, डॉ.अंबेडकर निकालने होंगे और इसके लिए आवश्यक होगा कि हम शिक्षा की ओर बेहतर प्रयास करें। चरित्र निर्माण की शालाएं विकसित करें। देश प्रेम का पाठ पढ़ाने को कार्यशालाओं का आयोजन करें। वे अपने पद चिन्हों को बनाएं जिन पर अन्य लोग भी चल सकें।
हमारा राष्ट्र है तो हम हैं, हमारा कर्तव्य राष्ट्र की सुरक्षा एकता, सुंदरता और निर्माण होना चाहिए। प्रत्येक सुबह राष्ट्र निर्माण की सोच के साथ होनी चाहिए। कोई भी कार्य करने से पूर्व हमारे मन में राष्ट्रप्रेम की भावना होनी चाहिए। काश ऐसे लोगों का नामोनिशान ही मिट जाए जो अपनेराष्ट्र के साथ गद्दारी करते हैं। राष्ट्र की अस्मिता को दांव पर लगा कर नापाक लोगों की मदद कर उनका गुणगान करते हैं। कवि की चार पंक्तियां हमें इस ओर संदेश देते हुए कहती हैं।
जो भरा नहीं निज भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।