मैं नए दौर की नारी हूँ
मैं नए दौर की नारी हूँ
मैं नए दौर की नारी
सज्जन के लिए सुमन हूँ मैं
दुर्जन के लिए कटारी
चाहे कितनी बाधाएँ हों
मैं हार नहीं मानूँगी
संघर्ष ही अब पथ है मेरा
इस पथ बढ़ना ठानूँगी
मन्ज़िल को अब पाना ही है
कितनी हो राह दुधारी …
सदियों सदियों शोषण भोगा
तब शान बनाई अपनी
जौहर के शोलों में झुलसी
तब आन बचाई अपनी
सीता से ले पद्मिनी तलक
झेले हैं संकट भारी …
अब कोई जगह नहीं ऐसी
मैं जहाँ नहीं हूँ आगे
बाहर – भीतर से जागी तब ही
भाग ये मेरे जागे
इतिहास नया लिखना है अब
ये जंग रखूँगी जारी …