लॉक डाउन में छूट और चुनौतियां
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद न्यूज़
नई टिहरी, 3 मई 2020। केंद्र सरकार के दिशा निर्देशन में लगभग 6 सप्ताह से जारी लॉक डाउन में कुछ रियायतें दी जा रही हैं। उत्तराखंड की सबसे बड़ी आबादी खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को बहुत राहत मिलने वाली है। उम्मीद है कि रेड जोन में रहने वालों को भी यथाशीघ्र इस कष्ट से राहत मिलने का अवसर सुलभ हो जाएगा। राहत के साथ-साथ अब राज और समाज को बहुत ज्यादा और कई मोर्चों पर सतर्कता बरतनी पड़ेगी।
देश के अन्य राज्यों और उत्तराखंड के भीतर विभिन्न जिलों में फंसे लोगों का घर लौटना शुरू हो गया है। कोरोना की प्रकृति, फैलाव को लेकर जो माहौल बना हुआ है, इस कारण डर स्वाभाविक है। यह अपने से अपनों से डर का अनूठा समय है। जो लोग घर लौट रहे हैं और जो घर हैं, सभी सुरक्षित हैं, यह विश्वास कायम किया जाना जरूरी है। सरकार को यह स्पष्ट तरीके से जनता को समझाना होगा कि किसी पर कोरोना संदेह की गुंजाइश नहीं है।
पहाड़ की यात्रा के रास्ते सीमित हैं। इन के मुहाने पर सुरक्षित वापसी की गारंटी सुनिश्चित है यह उम्मीद की जानी चाहिए। हाल फिलहाल कई लोगों ने रेड जोन से आकर ग्रीन जोन वालों के लिए डर और आशंकाओं का माहौल पैदा किया है। ये लोग किसी अंध आस्था के मारे नहीं हैं,बल्कि पढ़े लिखे समझदार हैं। ऐसे समझदार लोगों पर अतिरिक्त सतर्क नजरें रखने की ज्यादा जरूरत है।
लॉक डाउन के इस दौर में कुछ छुटपुट शिकायतों को छोड़कर भुखमरी जैसी त्रासद घटनाये नहीं हुई है। राज- समाज इसके लिए तारीफ योग्य है। छोटे-छोटे दुकानदारों ने अपने मानव धर्म को निभाया है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सबसे कष्टप्रद दिनों में इस बड़े दिलवाले छोटे व्यापारी समुदाय की संवेदनशील भूमिका याद आती है। बेशक अपवाद यहां भी है। विडंबना है कि संकट के समय सब्जियों में मुनाफाखोरी की पहली खबर हमारी धर्म नगरी ऋषिकेश से आई थी।
अब बड़ी चुनौती आवश्यक वस्तुओं की वाजिब दामों के साथ निर्बाध आपूर्ति जारी रहने की है। जमाखोरी-मुनाफाखोरी का बाजार शायद गर्म होने वाला है। लॉक डाउन की सख़्ती में दुबके जमाखोर, मुनाफाखोर अवसर की ताक में नहीं हैं, यह विश्वास करना खुद को धोखा देना है। ऐसे लोगों के हरकारे बाजारों, कस्बों में माल पहुंचाने के साथ इसकी पृष्ठभूमि तैयार कर रहे होंगे,क्या वक्त रहते इसकी जांच करके आशंकित समस्या के समाधान के पूर्वोपाय राज्य सरकार कर रही है। बेशक राजनीति भी होगी। यहां एक किस्सा बयां कर रहा हूं। बरसों पहले की बात है। अपने एक नजदीकी की माता जी के अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहा था। बाद में जलमग्न हुई टिहरी शहर की भादू की मगरी में मेरे आगे एक युवा नेता जा रहा था। वह चलते चलते दुकानदारों को समझा रहा था, प्याज़ के दाम बढ़ने वाले हैं,तुम….।
देश में प्याज बाजार की अराजक प्रवृत्ति का बरसों से पैमाना बना हुआ है। इसमें सरकारें बनाने और मिटाने का दम है, यह मान्यता बन गई है। लॉक डाउन के ऐन पहले उत्तराखंड के बाजारों में प्याज ₹50 से लेकर 80 रुपये किलो बिक रहा था। इस बीच ₹40 से ₹30 किलो पर आ गिरा है। इस गिरावट की वजह क्या है? क्या देश-प्रदेश में इस बीच प्याज के असमय उत्पादन में चमत्कारी बढ़ोतरी हुई है? कुछ दिन पहले विदेशों से प्याज आयात और उसको गरीब के घर पहुंचाने की कष्टप्रद बहादुरी की कोशिशें सरकार बहादुर कर रही थी, क्या वह सफल हो गई है? कहते हैं कि नेपोलियन बोनापार्ट का सपना था कि मिस्र पर कब्जा करने के बाद उसकी पहुंच सीधे भारत की अकूत खजाने तक संभव हो जाएगी।उसको मिश्रित से दरिद्र अवस्था में लौटना पड़ा था। सरकार का प्याज मिश्र से आने वाला था। कहीं नेपोलियन की आत्मा प्याज….।
तब तो प्याज को सोना मानकर गोदामों में छिपना- छिपाना मजबूरी है। सरकार इस प्रतीकात्मक कैद की जकड़बंदी तोड़कर जनता की राहत जारी रखने को मन,वचन, कर्म से तैयार है? सौ टके की बात हर दुकान पर वस्तुओं के उचित दामों की सूची उसके आधार पर बिक्री की गारंटी, क्षेत्रीय, जिले से लेकर राज्य के खाद्यान्न आपूर्ति अधिकारियों की पूर्णतः जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। इधर महंगाई बढ़ी, सरकार की साख घटी।
और शाम के जाम के नाम
हाथी वाले! हाथी बेचेगा? शराब की यह मदमस्त कहानी बहुतों को याद होगी । शराब के ठेके खुलवाने के निर्णय लेते समय सरकार को यह नसीहत याद तो रही होगी। उसको स्थिति नियंत्रण में रखने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। लेकिन शराबबंदी की दशा में अवैध शराब कारोबार पर रोक और उससे राजस्व घाटे और बढ़ते अपराध पर अंकुश के मुकाबले यह क्या ज्यादा जोखिमपूर्ण कदम होगा?
लॉक डाउन के दिनों में भी शराब काफी बिकी है। पर एक रोचक बात सामने आयी है। इस बार लॉक डाउन के चलते हरियाणा, चंडीगढ़ से आवक कम रही है। शादियों का सीजन था। बारातियों-घरातियों के लिए जमा की गयी ‘शराब’ का सदुपयोग नहीं हो पाया। चलो कहीं तो ख़पी। लेकिन मांग के अनुपात में बहुत कम। वजह प्रदेश सरकार ने नये वित्त वर्ष के लिए शराब के दामों में 20 प्रतिशत कमी कर दी थी। जिन्हें मार्च के बाद पिलाने के लिए जमा करनी थी, वे महंगी क्यों खरीदते? कल्पना कीजिए नए साल के लिए शराब में ही करने की घोषणा होती तो मार्च में कितनी ज्यादा शराब खरीद जमा होती?लॉक डाउन के ये दिन ज्यादा तर न होते। शराब महंगी करने की मांग करने वाला हरियाणा, चंडीगढ़ की ही चलनी चाहिए?
बहरहाल प्याज और शराब के इस राजनीतिक अर्थशास्त्र की पहेली और सामाजिक यथार्थ की गुत्थम गुत्था आम जनता जिस दिन बूझ लेगी, बाजार की उछल-कूद, बांझ समाज सेवा और चालू राजनीति पर लगाम का वह शुभ शुरुवाती दिन होगा। फिलवक्त तो लॉक डाउन की रियायतों का आगामी खुशनुमा दिनों की शुभकामनाओं और साझे संकल्प के साथ स्वागत करते हैं। और हां ताइवान, न्यूजीलैंड की शासन और राष्ट्र प्रमुखों से लेकर ऋषिकेश, नई टिहरी, श्रीनगर सहित नगर परिषदों तक महिला प्रतिनिधियों ने ज्यादा संवेदनशीलता का कुशल परिचय दिया है, आगे बढ़ते समाज के लिए शुभ है।