समाज सेवा, राजनीति: तब और अब
बड़ोनी: तीन बार विधायक, मासिक आय डेढ़ हजार रुपये
270 रुपए में लड़ा लोकसभा चुनाव-मिले डेढ़ लाख वोट
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद न्यूज़* 13 जून 2020
उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बड़ोनी की सन 1999 में मृत्यु पूर्व मासिक आय ₹1550 मात्र थी, मय विधायकी पेंशन। बडोनी जी तीन बार देवप्रयाग क्षेत्र से उत्तर प्रदेश में विधायक रहे थे। उससे पूर्व जखोली के ब्लाक प्रमुख रहे थे।
तीन बार विधायक रहे और बड़े बड़ों से भी बड़े जननेता। मासिक आय मात्र ₹1550 रुपये। रहने को दो कमरे का छोटा सा मकान। आज की राजनीति ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायत स्तर तक राजनीति की सेवा में आम के आम गुठलियों के दाम। समाज के हर वर्ग खासकर गरीबों, उपेक्षितों की सेवा के लिए रात दिन तत्पर। सिर्फ देवप्रयाग तक ही नहीं बल्कि जहां तक संभव हो। बडोनी जी की आर्थिक स्थिति पर शायद कोई आसानी से भरोसा ना करे। बहुत से बड़ोनी अनुयायी, प्रेमी तो यह भी नहीं जानते हैं कि वह कब-कब विधायक रहे थे ।
बडोनी जी 1967 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए थे। वह राजनीतिक कार्यकर्ताओं की उस पीढ़ी के थे जो महात्मा गांधी के विचारों से अनुप्राणित होकर समाज सेवा के लिए राजनीति में थे। जखोली और देवप्रयाग की जनता ने उसी निष्काम समाजसेवी को अपना प्रतिनिधि चुना था। बडोनी जी के चुनाव प्रचार का जिम्मा स्वंय जनता संभालती थी।
1977 में जनता पार्टी की लहर थी। बहुगुणा जी ने अपने अनुयायी गोविंद प्रसाद गैरोला जी को देवप्रयाग से जनता पार्टी का टिकट दे दिया। पार्टी और बहुगुणा जी की लोकप्रियता भी काम न आयी। बडोनी जी को जनता ने पुनः चुनकर लखनऊ भेज दिया।
सत्तारूढ़ जनता पार्टी की सरकार ने उनको पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष का दायित्व सौंप दिया। उनकी जन सेवा, अनुभव और पहाड़ की समस्याओं तथा जरुरतों के मुद्दों पर गहरी पकड़। विकास की सही राह पर चलने की तड़प की वजह से।
डबरानी की बाढ़ हो या 1991 का भीषण भूकंप, बडोनी जी पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए सबसे आगे रहते थे। इसलिए लोग उनको पसंद करते थे। उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशी के रूप में 1989 का आम चुनाव बड़ोनी जी ने लड़ा था। तब लोकसभा प्रत्याशी के लिए जमानत राशि ₹500 थी। बडोनी जी के पास मात्र 270 रुपये थे। कुछ कार्यकर्ताओं ने बाकी पैसे दिए।
उनके सामने थे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के संपन्न प्रत्याशी ब्रह्मदत्त और वीपी सिंह के मोर्चे के कमलाराम नौटियाल। बडोनी जी लगभग डेढ़ लाख वोट लेकर मात्र 11हजार मतों से चुनाव हार गए। बीपी सिंह लहर के बाद बावजूद कामरेड नौटियाल तीसरे नंबर पर रहे। मात्र 270 पर खर्च कर सकने वाले और वैसी ही खस्ताहाल पार्टी के प्रत्याशी को डेढ़ लाख वोट आज के दौर में अविश्वसनीय लगने वाली घटना है।
18 अगस्त 1999 को उन्होंने अंतिम सांस ली। भाई और साधारण लोग जितना कर सकते थे उन्होंने असाध्य रोग से लड़ते हुए समाजसेवी योद्धा के लिए किया। तब प्रशासन के एक अधिकारी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक जब यह बात पहुंची तो उन्होंने एक बड़ी राशि इलाज के लिए भेजी। वह धनराशि कई दिनों तक टिहरी गढ़वाल के कोषागार में पड़ी रही। बडोनी जी किसी भी क्षण इस दुनिया से विदा होने वाले हैं सारे उत्तराखंड में खबर फैल गई। तब डीएम साहब को भी एलआईयू से यह सूचना मिली। प्रशासन को याद आयी कि सीएम की भेजी धनराशि का क्या करें? बहरहाल, बेहोश पहाड़ी गांधी को वह राशि थमा दी गई। उस संत की आत्मा तो कूच कर रही थी, उत्तराखंड राज्य का सपना साकार होते देखे बिना।
अब जरा इस अंतिम घटनाक्रम से अपनी उत्तराखंड सरकार और उसकी कार्यप्रणाली से तुलना करें! क्या कुछ बदला हुआ लग रहा है? समाज सेवकों को तो हम झेल ही रहे हैं।