धार्मिक-सांस्कृतिक पर्यटन के परिपेक्ष्य में टिहरी गढ़वाल
-डॉ.सुरेंद्र दत्त सेमल्टी
गढ़ निनाद न्यूज़* 30 जून 2020
उत्तराखंड अति प्राचीन काल से देवताओं की निवास स्थली ऋषि-मुनियों, सिद्ध-साधकों की तपस्थली, यक्ष, किन्नर, गन्दर्भों की लीला स्थली, खस, किरात, नागों की क्रीड़ा स्थली और आर्य जाति की देवभूमि रही है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य, भौगोलिक संरचना, स्वास्थ्यप्रद जल वायु, शान्त वातावरण लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा, जिस कारण अति प्राचीन काल से यहां तीर्थ-यात्रा आरंभ हो गई थी। इसकी पुष्टि व्यास स्मृति (4/15) तथा शंख स्मृति (14/27-29) आदि अनेक धर्म ग्रंथों के अवलोकन करने से होती है।
ध्यान एकाग्र करने की दृष्टि से ही मंदिरों के निर्माण की शुरुआत
जब यहां अनेक भूभागों से लोग आकर रहने लगे तो अपनी धार्मिक भावनाओं को मूर्त रूप देने तथा ध्यान एकाग्र करने की दृष्टि से ही मंदिरों का निर्माण आरंभ हुआ। चौथी शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक यह कार्य अपने चरमोत्कर्ष पर रहा। फिर तो यहां धार्मिक तीर्थाटन को अत्यधिक बल मिला और देश-विदेश से लोगों का आना बढ़ता गया। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के अतिरिक्त भी अन्य मंदिरों, मठों, गुफ़ाओं, नदी तटों, नदी संगमों पर यात्रियों का आना-जाना निरंतर बना रहा। जिनमें अनेक स्थल टिहरी गढ़वाल में भी हैं।
भिलंगना और भागीरथी संगम पर 2278 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जिले का मुख्यालय पुरानी टिहरी को 28 दिसंबर सन 1815 को महाराजा सुदर्शन शाह ने बसाया था ,जो माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय पर 29 अगस्त 2005 को टिहरी बांध परियोजना के कारण जलमग्न होकर 42 वर्ग किलोमीटर की एक वृहदाकार झील के रूप में परिवर्तित हो गई, और उसके स्थान पर 1550 मीटर की ऊंचाई पर नई टिहरी बसाई गई।
260.5 वर्ग मीटर ऊंचे बांध के बन जाने से एशिया की सबसे बड़ी झील पर्यटकों को आकर्षित कर रही है। इतना ही नहीं 2400 मेगावाट की क्षमता वाली यह परियोजना भले ही अभी तक मात्र 1400 मेगावाट के लगभग की क्षमता प्राप्त कर सकी है, जिसमें 400 मेगावाट क्षमता कोटेश्वर बांध की भी सम्मिलित है, इस उपलब्ध विद्युत से टिहरी जल विद्युत निगम को लगभग 1600 करोड़ की आय होती है। ये सारी बातें पावर हाउस, सुरंगे, उनके अंदर का निर्माण कार्य, पर्यटन की नई पृष्टभूमि का सृजन करते आ रहे हैं।
पर्यटकों की संख्या में निरन्तर हो रही वृद्धि
उत्तराखंड के अन्य जनपदों की तरह टिहरी को भी धार्मिक,सांस्कृतिक, प्राकृतिक, वन्य जीवन, साहसिक एवं इको पर्यटन विरासत में मिले हैं। लेकिन अब टिहरी बांध, झील, जलबोट, सुरंगों के कारण पर्यटकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। एक सर्वे के अनुसार इस जनपद में सन 2008 में 1067869 देशी, 14748 विदेशी पर्यटक आये। जिनकी संख्या सन 2009 में बढ़कर क्रमशः 1082612 और 15329 हो गई थी। यदि पर्यटन स्थलों को अधिक सुविधा संपन्न बनाया जाय, नये पर्यटन स्थलों/स्थितियों/वस्तुओं/परम्पराओं को तलाशा जाए तो यह संख्या कई गुना बढ़ सकती है।
अनेक खूबसूरत स्थल हैं यहां
इसके अंतर्गत जितने भी खूबसूरत (प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त) स्थान हैं उनका प्रचार-प्रसार के साथ पूर्ण सुविधा सम्पन्न बनाया जाय। टिहरी जनपद में धनोल्टी, चम्बा,नरेन्द्र नगर, बादशाही थौल, रानीचौंरी, अंजनीसैण, भिलंगना घाटी, घनसाली, बूढ़ा केदार, सहस्त्रताल, नई टिहरी, पँवाली कांठा, कुश कल्याण, देवप्रयाग, माटया बुग्याल, रीह गंगी गांव, खतलिंग ग्लेशियर आदि ऐसे ही स्थान हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं।
यहां जितने भी तीर्थ स्थल हैं भले ही वे अलौकिक शक्ति संपन्न एवं चामत्कारिक हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव और उपेक्षा के कारण पर्यटक वहां तक नहीं पहुंच पाते। इस ओर भी सकारात्मक सोच रखकर कार्य करने की आवश्यकता है।
नीतियों का अकाल कहें या बजट का जंजाल
टिहरी में अनेक भौगोलिक, ऐतिहासिक, मानवकृत स्थल एवं वस्तुएं हैं जो पर्यटकों को आमंत्रित कर सकती हैं, लेकिन पर्यटन प्रदेश का नारा देने वाली उत्तराखंड सरकारें या तो सुनियोजित नीतियां ही नहीं नहीं बना पा रही हैं या फिर पर्यटन बजट की कमी के कारण यह सपना यथार्थ रूप धारण नहीं कर सका है। यदि ऐसा है तो पर्यटन बजट बढ़ा दिया जाना चाहिए।
ऋषि-मुनियों की तपस्थली
यहां अनेक ऐसी प्राकृतिक गुफायें हैं, जिनमें अनेक दैवीय शक्तियों, ऋषि-मुनियों, सिद्ध- साधकों ने तप किया जिस कारण वे तीर्थस्थल बन गये, कुछ ऐसी भी गुफायें हैं जिनके अंदर प्राकृतिक या फिर मानवकृत चित्रकारी दृष्टिगोचर होती है, कुछ के सम्बन्ध में स्थानीय जनमानस में अनेक किंवदन्तियाँ भी प्रचलित हैं। व्यास गुफा, च्याली की गुफा, कुकरखाड़, तोताघाटी की गुफा की तरह अन्य अनेक गुफायें पर्यटकों के स्वागतार्थ हर पल उपलब्ध हैं।
पुरानी कारीगरी देखते ही बनती है
देवप्रयाग- ऋषिकेश मोटर मार्ग के मध्य व्यासी के पास ‘राजा पेड़’, रैबारू गली, राजशाही के दौरान राजा द्वारा अपराधियों को सजा देने के कुछ विशेष स्थान, यहां के वीर भड़ों द्वारा बड़े-बड़े शिलाखंडों द्वारा निर्मित दीवार, उड़द के पाउडर से निर्मित लकड़ी व पत्थर की कारीगरी से बनाए गए भवन, राजाओं के गढ़, औषधीय एवं चामत्कारी जड़ी बूटियां, वनस्पतियां, जीव-जंतु, विभिन्न गांवों की कुछ विशेष परंपराएं, रहन-सहन, खान-पान जैसे बेडवार्त, पंडवार्त, लांग खेलना, शादी के अवसर पर मांगलिक गालियां देना, झोटों, चकोरो, मुर्गों, कबूतरों की लड़ाई करवाना तथा देवताओं के चमत्कार जैसे हाथ में हरियाली जमाना, आग में नाचना, गरम लाल लोहे को जीभ से चाटना, मुंह से श्रीफल, छत्र, चुन्नी उगलना, भूत-भविष्य- वर्तमान सही-सही बतलाना, बहुत ज्यादा खाद्य सामग्री का भक्षण करना, मौण मेला, चैती पसारा, बादियों के नृत्य-गीत आदि परंपराओं को यदि नेटवर्क से जोड़ा जाए तो निश्चित ही इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
जलक्रीड़ा की अपार संभावनाएं
टिहरी जिला जलक्रीड़ा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसके विस्तार से भी पर्यटन को अत्यधिक बल मिल सकता है। वर्तमान में ऋषिकेश- श्रीनगर मोटर मार्ग के मध्य कौड़ियाला के पास रिवर राफ्टिंग धीरे-धीरे विकसित होता जा रहा है, उसी प्रकार अन्यत्र भी जहां इसकी संभावना बनती है, विकास किया जाना चाहिए। टिहरी झील तो इस दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार अन्य साहसिक खेलों को आरम्भ कर विकसित किया जा सकता है।
इस बात को जानकर दुख होता है कि हमारे प्रदेश में पारिस्थितिकीय पर्यटन परियोजनाओं के नाम पर लाखों की संख्या में धन तो खर्च किया जा चुका है, लेकिन स्थिति पर ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ की उक्ति चरितार्थ होती है।
पुराने/नये पर्यटन सर्किट हों विकसित
यद्यपि सन 2002 में प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने राज्य की पर्यटन नीति बनाई थी, जिसके अंतर्गत पुराने पर्यटन सर्किटों के साथ नये सर्किटों का विकास जैसे हेल्थ टूरिज्म- जिसके अंतर्गत आयुर्वेदिक, योग, स्पा, पंचकर्म पर आधारित मसाज केंद्र (जैसे नरेंद्रनगर आनंदा होटल) इको टूरिज्म का विस्तार, ग्रामीण पर्यटन, संस्कृति पर्यटन, नेचर टूरिज्म, धार्मिक पर्यटन, आदि के विकास पर विचार किया गया था, लेकिन इसमें आंशिक सफलता ही धरातलीय हो पायी है।
हाईटेक सुविधाओं का टोटा
मात्र नीति बना देना ही पर्याप्त नहीं, इसके लिए सभी सड़कों की हालत में सुधार, पर्यटन स्थलों, उसके मार्गों पर जगह-जगह रहने और खाने पीने की व्यवस्था के साथ-साथ विद्युत, दूरसंचार, सफाई, सौंदर्यीकरण, शांत वातावरण, मनोरंजन की सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए सभी पर्यटक यहां आने के लिए उत्सुक होंगे। इसके लिए शासन-प्रशासन को सभी राजनैतिक दलों, स्वदेशी विदेशी प्रवासी विशेषज्ञों की राय लेकर कोई कारगर नीति बनाई जाय तो आशातीत सफलता मिल सकती है। उदाहरण के तौर पर विदेशी एवं सुदूर क्षेत्रों से आने वाले पर्यटकों के सामने एक समस्या आती है संपर्क भाषा ज्ञान की। इसके समाधान हेतु ऐसे प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना की जानी चाहिए जिन से प्रशिक्षित होकर सभी बिना दुभाषिये की सहायता लिए एक दूसरे की बात को समझ सकें। इस समस्या का समाधान औपचारिक-अनौपचारिक शिक्षा द्वारा भी किया जा सकता है।
पर्यटन को गति देने के लिए यहां के भूगोल, संस्कृति, पर्यटन स्थलों आदि पर केंद्रित साहित्य का प्रकाशन किया जाना भी आवश्यक जान पड़ता है, ताकि उस साहित्य के अध्ययन से पर्यटक देश-काल परिस्थिति के अनुसार उचित समय पर पूर्ण तैयारी और इच्छित क्षेत्र में पहुंचकर पर्यटन का भरपूर आनंद ले सकें।
टिहरी झील के चारों ओर हो सौंदर्यीकरण
टिहरी गढ़वाल में जहां एक ओर भौगोलिक (वनस्पतियां, वन्यजीव, घास के बुग्याल, मनमोहक प्राकृतिक दृश्य, गुफाएं, ताल, ग्लेशियर, नदी, झरने आदि-आदि ) तथा सांस्कृतिक रीति रिवाज (परंपराएं, खेले-मेले, तीर्थ स्थल, देवताओं के चमत्कार, विभिन्न एवं आश्चर्यजनक मनोरंजन पूर्ण परंपराएं, हस्तकला आदि) सुदीर्घ काल से पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं, वही वर्तमान परिपेक्ष में टिहरी बांध परियोजना इस दृष्टि में प्रथम स्थान प्राप्त कर सकती है, यदि उसकी झील और सन्निकट स्थानों का सुंदरीकरण कर उन्हें हर प्रकार से सुविधा संपन्न बनाया जाय। ऐसा सुझाव देना युक्तिसंगत लगता है कि पर्यटकों को झील के ऊपर सैर करने के लिए आधुनिक वोटों की सुविधा, सुरंगों के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी जाए तो इस दिशा में यह सार्थक प्रयास होगा। भले ही राज्य में पर्यटन विकास के लिए टाटा फेयरवुड जैसी एजेंसियां कार्य कर रही हैं, लेकिन इसके लिए शासन-प्रशासन को सक्रियता के साथ विस्तृत मास्टर प्लान तैयार कर सुनियोजित ढंग से कार्य करना होगा।
झील के सन्निकट गांवों को पर्यटन ग्राम के रूप में विकसित कर रोजगार पैदा करें
झील के सन्निकट मार्गों पर स्थित गांवों को पर्यटन ग्राम के रूप में विकसित कर बेरोजगारों को रोजगार देने, व्यापारियों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने, स्थानीय परंपराओं के प्रचार-प्रसार एवं सरकार की आय बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। झील के सन्निकट ऐतिहासिक स्थल ‘ खैंट पर्वत’ जहां की अप्सराओं ने वंशी वादक जीतू बगड़वाल का हरण कर दिया था तथा जो स्थान अनेक चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है, वहां तक तथा उसी की तरह प्रतापनगर व अन्य ऐतिहासिक/ धार्मिक/ सांस्कृतिक स्थलों तक का सौंदर्यीकरण कर, दैवीय आपदाओं को सहन करने वाले भवनों का निर्माण किया जाए तो निश्चित ही पर्यटक पूर्ण तनाव रहित होकर यहां आकर अपने तन मन की प्यास बुझा सकते हैं। स्थानीय एवं पर्यटकों के स्वास्थ्य को मध्य नजर रखते हुए झील में 108 बोट एंबुलेंस की सुविधा भी हर क्षण रहनी चाहिए, ताकि किसी के मन में अनिष्ट की आशंका न रहे।
टिहरी गढ़वाल के पर्यटन पर यदि शोध किया जाए तो अन्य अनेक अनछुये स्थल, परंपराएं पर्यटन को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं, इसके लिए सभी को मिलकर कार्य करना होगा ताकि विश्व के पर्यटन मानचित्र पर यह नाम अंकित होकर पर्यटकों को आकर्षित कर सके।