“सच्चा सपूत”
डॉ. सुरेंद्र दत्त सेमल्टी
सुमन हमारे आदर्श रहे,और रहे पथ प्रदर्शक हर वर्ष,
निस्वार्थ भाव से जीवन भर वे, करते रहे अनवरत संघर्ष।
वैद्य पिता के घर में जन्मे, मिला सेवा करने का संस्कार,
रुकावटें जब भी मार्ग में आई ,मानी नहीं कभी हार।
पढ़ लिख कर जब होश सम्भाला, चुप ना रहा तब इनका मन,
मातृभूमि की सेवा करना, समझा सर्वश्रेष्ठ था धन।
राजशाही की कार्य संस्कृति, इनको नहीं थोड़ी भी भाई,
सह रहे अत्याचार सभी जन, यह देख दया तब मन में आई।
बहुत प्रयास किया इन्होंने, प्रतिपक्ष नहीं होश में आया,
प्रताड़ना गाली मार पिटाई, सब कुछ था तब इन्होंने पाया।
साथियों के संग सुमन जी को, डालते रहे ये कारागार,
प्रलोभन दिया बहुत डराया, पर नहीं मानी इन्होंने हार।
चौरासी दिन तक जेल के अंदर, किया अंत में तब उपवास,
राजशाही को उनका कर्म यह, थोड़ा भी नहिं आया रास।
अंत में प्राण पखेरू उड़कर, पैदा हुई तब एक चिनगारी,
जिसके आगे क्रूर राजसत्ता, पूर्ण रूप से तब थी हारी।
श्रीदेव सुमन का बलिदान हमारे, हर प्रकार से आया काम,
सुख भोग रहे हम स्वतंत्रता का, कभी ना भूलें उनका नाम।
वे लोग धन्य हैं धरती में, जिनकी संताने हैं सुमन समान,
उनके सु कृत्यों के द्वारा, बढ़ता है धरती का मान।