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भ्रष्टाचार एक कथा अंनत

भ्रष्टाचार एक कथा अंनत
विक्रम बिष्ट
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विक्रम बिष्ट* 

गढ़ निनाद न्यूज़* 17 सितम्बर 2020।

नई टिहरी। बिहार में सरकारी और असर-कारी आदमी लोग जब मुर्गियों का चारा चर रहे थे तो सोचा नहीं कि बेचारी मुर्गियों की आहें 20 साल राज करने का दावा करने वाले लालू प्रसाद को जेल की हवा खानी पड़ेगी। उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री समेत कई छोटे बड़ों को ताउम्र भ्रष्टाचार की प्रति मूर्ति का तमंगा ढोना पड़ेगा।

*बर्षों पूर्व खबरें पढ़ी थी कि उस चारा घोटाले में डेढ़ सौ से अधिक लोग जेल डाले गए थे। चार-पांच वर्षो पूर्व दिल्ली के एक दैनिक में हाशिए की छोटी सी खबर थी कि 16 लोगों को सजा सुना दी गई है। बाकी का क्या हश्र हुआ? 

*जब ईश्वर के प्रतिनिधि राजा, महाराजा, सम्राट शासन करते थे तो यह सवाल पूछने की आजादी नहीं थी। ऐसी घटनाएं सामान्य बातें थी। 30 मई 1930 तिलाड़ी (रवांई उत्तरकाशी) के मैदान में  टिहरी राज्य की सेना ने किसानों को तीन ओर से घेरकर गोलियां बरसाई। 17 किसान मारे गए। जो टिहरी जेल लाए गए थे उनमें से पंद्रह वही मरे। 23 अप्रैल 1930 को वीर चंद्र सिंह (गढ़वाली) भण्डारी के नेतृत्व में गढ़वाली सैनिकों ने पेशावर में निहत्थे पठानों पर गोलियां चलाने का अंग्रेज अफसर का आदेश नहीं मान कर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह का गौरवशाली इतिहास रचा था। महज 5 सप्ताह बाद अपने देशी राज्य के सिपहसालारों ने निहत्थे किसानों के खून से होली खेली। 

विद्रोह का मूल कारण तो राजशाही की जन विरोधी नीतियां थी। लेकिन जनता और राजा के बीच बड़े ओहदेदार कारिंदों और जासूसों की भ्रष्ट करतूतों से जायज जनांदोलन का यह अंजाम हुआ।

*हाल के बरसों में जब बड़े-बड़े नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा तो आम जन मानस में कानून के राज के प्रति विश्वास बढ़ा। न्यायपालिका के प्रति तो सम्मान है ही उसके सक्रिय हस्तक्षेप को भी आमतौर पर सराहा जाता रहा है।

लेकिन बाकी तंत्र तो वही है। इसलिए ज्यादातर मामले अदालत में टिक नहीं पाते। आरोप मुक्त हुए नेताओं का कद बढ़ जाता है। बेजुबान कमजोर लोग दोषी ना होते हुए या अपेक्षाकृत कम दोषी होने पर भी आजीवन अभिशप्त कर दिए जाते हैं। यह भ्रस्टाचार का ही एक और रूप तो है? 

*उत्तराखंड में प्रतिदिन कोरोना के प्रसार की खबरों की दहशत के बीच बुधवार की एक खबर से दिल खुशी के बाग बाग हो गया। अपना देवभूमि राज्य देश के 5 सबसे महंगे राज्यों में शामिल हो गया। इतना मलाल है कि हम अभी भी पांचवें नंबर पर हैं, लेकिन अति प्रसन्नता है कि बड़े भाई उत्तर प्रदेश से एक नंबरों ऊपर हैं।  वह पड़ोसी हिमाचल हम से 30 साल बूढ़ा बड़ी शेखी बंधाता है। विकास और खुशहाली की दो सीढ़ी नीचे रह गया।

*मराठी टमाटर तो 80 रुपये में किलो पहले ही हो गया था। उम्मीद है प्याज जल्दी रॉकेट छलांग  लगाएगा। कड़वा तेल की धार गंजों के सिर पर बाल उगाएगा। आलू की कीमत सुनकर कहेंगे यह भी कोई खाने की चीज है। उपवास में संतोष है , सुख है। वाह क्या बात है।


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Govind Pundir

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