कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला(भाग-10)
विक्रम बिष्ट*
पहला और महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि मुख्य सचिव के आदेश से जिलाधिकारी स्तर से करवाये गये भौतिक सत्यापन का क्या हुआ। उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार मुख्य सचिव कार्यालय के पृष्ठांकन 1903 फरवरी 28 , 2015 को यह आख्या अपर सचिव समाज कल्याण विभाग को कार्रवाई हेतु भेजी गई थी। इस पर क्या कार्रवाई हुई ! पूरे 5 सप्ताह बाद जिला समाज कल्याण अधिकारी के द्वारा एक दर्जन शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों के खातों से छात्रवृत्ति एक करोड रुपये से अधिक की धनराशि ई पेमेंट/ ई ट्रांसफर द्वारा हस्तांतरित करने के लिए 15 बैंकों को चेकों के द्वारा भेजी गई थी।
पिछले अंक में उल्लेख किया गया है कि स्वामी पूर्णानंद डिग्री कॉलेज के 50 छात्र-छात्राएं भी इसमें शामिल हैं, जो समाज कल्याण विभाग की शासकीय सूची में थे। द्वितीय सत्यापन एक वरिष्ठ अधिकारी- जिला पशुधन अधिकारी के माध्यम से कराया गया था। विभागीय सत्यापन एक कनिष्ठ कर्मचारी से कराया गया था। जो सहायक समाज कल्याण अधिकारी के उपलब्ध न होने के कारण तत्काल एक आवश्यक व्यवस्था थी जो सहायक समाज कल्याण अधिकारी के उपलब्ध न होने के कारण तात्कालिक एक आवश्यक व्यवस्था थी।
यदि दोनों सत्यापन जांचों में विरोधाभास था, जैसा कि दस्तावेज बता रहे हैं तो जिला से शासन तक अन्य अधिकारियों को क्या करना चाहिए था ? 14 नवंबर 2014 के शासनादेश में क्रमांक 7 एवं 10 में छात्रवृत्ति के लिए तय निर्देशों का अनुपालन क्रमशः छात्र और संस्थाध्यक्ष की जिम्मेदारी है। इनका पालन नहीं होने पर संबंधित छात्र एवं संस्थाध्यक्ष के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के प्रावधान किए गए हैं।
जारी–
अगले अंक में पढ़िए– कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला (भाग-11)