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“हे बरखा” – सौण भादौ की बरखा मां – गढ़वाली में एक रचना

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हे बरखा!

औन्दी तू, ककडांदी-गगड़ांदी,
चमचम सरग मां चाल चमकान्दी,
छलेंदन डरदन हमारा नौना बाला,
केकू तौन्की तू जिकुड़ी झुरांदी।

हे बरखा!

त्वैन बुंदा बरसैनी, ज्वान तरसैनी,
कैकी झुली रुझैनी कैकी तीस बुझैनी,
बान्द लगीं रा स्वामी की जग्वाल मां,
ऐन्सू का बसगाल, स्वामी घौर नि ऐनी।

हे बरखा!

त्वैन डांडी कान्ठयु मां कुयड़ी लौन्केनी,
गुयेरु घसेरयुँ की जीकुड़ी धौन्केनी,
फूट गेनी छोया भीटा पाख्युँ मां,
बस गे हैरयालि रीति आन्ख्यूँ मां।

हे बरखा !

लगी बिज्वाड़ सेरा पुन्गड़यूं मां,
जमी गे अनाज दूर उख्ड़यूँ मां,
कखड़ी मुँगरी अर साग सग्वड़ीयूं मां।
गोर बाखरों की खार छन्नियूं मां।

हे बरखा!

त्वैन मन्खि बगैनी, घरबार रौड़ैनी,
जू बगिनी उन्दू स्यू बौड़ी नि ऐनी,
डिन्डाली धुर्पाली अब चूण लै गिनी,
उबर गुठ्यार भी अब रूण लै गिनी।

हे बरखा !

✒️पीताम्बर की कलम से 🙏


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