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लघुकथा – ” नव वर्ष का तोहफा “

लघुकथा – ” नव वर्ष का तोहफा “
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 -डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी 
ग्राम/पो.पुजारगाँव(चन्द्रवदनी)
द्वारा-हिण्डोलाखाल,टिहरी गढ़वाल

    स्नेहा के पिता ने जहाँ एक ओर सुशिक्षित , गुणवान जवान बेटी के हाथ पीले कर चैन की साँस ली कि बहुत बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गया हूँ , इस जमाने मे तो माँ बाप हर बार अनेक संकाओं से घिरे रहते हैं कि बेटी के साथ कहीं कोई अनहोनी .............!  अब तो उस परमात्मा से यही प्रार्थना है कि उसका दाम्पत्य जीवन सुख के साथ बीते ।
         एक ओर पिता जहाँ यह सोच रहे थे तोे दूसरी ओर बेटी का वियोग उन्हें रात दिन बुरी तरह कचोटता जा रहा था ! आखिर ऐसा होना स्वाभाविक भी था ,वही तो हर प्रकार से उनका खयाल..... रखती थी ।
       शादी मकरसंक्रान्ति के पुनीत पर्व पर हुई थी ,अभी जादा समय नहीं हुआ  ,मुश्किल से पन्द्रह - बीस दिन ही हुये होंगे घर वालों को लग रहा था मानों वर्ष गुजर गये हों ! लेकिन किसी के चाहने और न चाहने से क्या होता है , बेटी तो ऐसा धन है जिसे धान की पौध की तरह उखड़ कर ससुराल मे जाकर हर प्रकार की जिम्मेदारियों को निभाते हुये आदर्श माँ बनकर सृष्टि का विस्तार करना होता है , इसी मे उसके जीवन की सार्थकता भी है। 
       कुछ समय बाद जब स्नेहा पहली बार मायके आई तो चाची , ताई ,भाभी ......., सभी जब जो मिलता प्रश्नों की झड़ी सी लगा देते - ससुराल कैसे लगी ?  सास ससुर कैसे ?.........आदि आदि ।
         स्नेहा  चेहरे पर मुस्कान लाकर कहती - माँ - बाप का कर्जा तो कोई भी सन्तान नहीं चुका पाती ! लेकिन मुझे लगता है कि मेरे ऊपर तो पिता जी का अतिरिक्त कर्जा हो गया जिन्होंने मेरा रिश्ता ऐसे घर मे किया जिसकी मैने कभी कल्पना तक भी नहीं की थी ! मायके मे माँ की मृत्यु से जहाँ मै उस सुख से बंचित हो गई थी , वह सुख और आनंद मुझे पुत्री सदृश समझ कर सासू माँ दे रही हैं ,जिसे मैं अपना सबसे बड़ा सौभाग्य समझ रही हूँ । पिता जी की ही तरह ससुर जी ........ ,जेठानियाँ , ननद , जेठ जी हों या देवर सभी ......। मैंतो अपने को सौभाग्य  .....सबको ऐसा ही रिश्ता मिले  ऐसी कामना करती हूँ ।
         जहाँ एक ओर मेरी पढ़ाई - लिखाई बेकार सी हो गई थी , जेठ जी के निजी विद्यालय मे मुझे शिक्षिका बनकर अपना ज्ञान छात्र - छात्राओं तक संप्रेशित करने का सौभाग्य भी मिल गया है , जो मेरा मुख्य ध्येय था ।
          पिता दूर से स्नेहा से हो रहे वार्तालाप को चुपचाप सुनते रहते और मन ही मन फूले न समाते कि पूर्व जन्म के संचित कर्मों का प्रतिफल समझो या फिर ...............जो स्नेहा बेटी को ही नहीं अपितु दोनों पक्षों को  रिश्ते के रूप मे इतना सुंदर नव वर्ष का तोहफा मिला है ।


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Govind Pundir

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