उत्तराखंड राज्य आंदोलन, भुलाये गये नींव के पत्थर-5
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद समाचार* 25 फरवरी 2021
नई टिहरी।
सुखदेव सकलानी
टिहरी शहर के आज़ाद मैदान में नेपालिया इंटर कॉलेज के पास सुखदेव सकलानी की पान की छोटी सी दुकान थी। वह भी उत्तराखंड राज्य की मांग को अलगाववादी मानते थे। लेकिन धीरे-धीरे जय उत्तराखंड का नारा दिलो दिमाग में कुछ इस तरह से पैठा की आजीविका की इकलौती वह दुकान पीछे छूट गई। उत्तराखंड क्रांति दल में शामिल हो।
उत्तराखंड बंद चक्का जाम जुलूस प्रदर्शन से लेकर ग्यारहगांव हिंदाव तक आंदोलन की अलख जगाने पहुंच गए।
मस्ता सिंह नेगी
मस्ता नेगी टिहरी की छात्र और अब मुख्यधारा राजनीति का जाना पहचाना नाम है।1994 में आंदोलन ने जोर पकड़ा तो अन्य छात्रों की तरह वह भी सक्रिय हो गए। तमाम कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहे। घंटाघर से टिहरी बाजार होते हुए भागीरथी किनारे हवा घर तक शाम को मशाल जुलूस निकालना नित्यक्रम था। वह भाजपा में है और जाखणी धार के पूर्व ब्लाक प्रमुख हैं।
अनिल अग्रवाल
अनिल अग्रवाल 1986-87 में गढ़वाल विश्वविद्यालय टिहरी परिसर छात्रसंघ के कोषाध्यक्ष पद पर उक्रांद की ओर से चुनाव लड़े थे। तब से उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय रहे हैं। विक्रम नेगी, परेन्द्र सकलानी, लोकेंद्र जोशी, सुरेंद्र रावत, दाताराम चमोली,पुरुषोत्तम बिष्ट, राजेंद्र रावत टिहरी में उक्रांद की और इसकी छात्र शाखा यूएसएफ के संस्थापक रहे हैं। राजेंद्र रावत भी अग्रवाल के साथ छात्र संघ महासचिव का चुनाव लड़े थे।
9 अगस्त 1987 को रक्षाबंधन का त्यौहार था। इसी दिन उक्रांद में पृथक राज्य की मांग के समर्थन में उत्तराखंड बंद चक्का जाम का आह्वान किया गया था। यह उत्तराखंड आंदोलन का पहला सबसे व्यापक और चुनौतीपूर्ण कार्यक्रम था। टिहरी में इसकी सफलता के लिए एक ठोस राजनीतिक रणनीति बनाई गई थी। टिहरी परिसर छात्र राजनीति में तब दो बड़े प्रतिद्वंद्वी समूह थे। एक विजय सिंह पंवार (वर्तमान विधायक प्रताप नगर), दूसरा मंत्री प्रसाद नैथानी के समर्थकों महावीर प्रसाद उनियाल, खेम सिंह चौहान आदि का। भादू की मगरी की ओर से हरीश थपलियाल के नेतृत्व में उक्रांद कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने और तीन धारा में महावीर उनियाल चौहान आदि ने मोर्चा संभाला था। व्यापारियों सहित विभिन्न वर्गों ने बंद को समर्थन देने का निर्णय लिया था। बंद चक्का जाम सफल रहा। विभिन्न मुद्दों पर बंद होता रहा था। लेकिन वह अभूतपूर्व था। पहली बार बाजार बंद के दिन खाली ठेलियों पर ताश कैरम के खिलाड़ी तक नहीं दिखे थे।