” मैं नारी हूँ ” (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)
डॉ सुरेंद्र दत्त सेमल्टी
गढ़ निनाद समाचार।
मैं नारी हूँ !
जिसे नहीं समझ पाता – हर कोई !
कुछ कहते हैं – अबला !
चलो ! यह उनकी नासमझी है !
उन्होंने सिर्फ मेरे वाह्य – कोमल शरीर को ही देखा है ।
नहीं देखी – मेरे भीतर की दुनियां / आग………..!
जहाँ उठते हैं – विद्रोह के स्वर /पैदा होते हैं – संघर्ष के स्वप्न / बेचैनी/ ……… !
होते हैं कई मायनों मे दृष्टिकोण भिन्न !
कशमकश मे जूझती / झूलती /
सदा मैं !
सोचा ही नहीं , आखिर – उठाई कलम !!
जगाने के लिये – नारी चेतना !!
दबी हुई नारियाँ – अब नहीं सहेंगी- अन्याय / अत्याचार/…!!
नहीं चलेगी – किसी की बैशाखी के सहारे ।
औरों के लिये बनेगी सहारा ।
चाहती हूँ बेहतर कल ।
क्यों रहूँ सदा अनबूझ पहेली !
बताना चाहती हूँ – मैं सप्राण प्रेम कहानी हूँ / दैहिक दैविक भौतिक – सच्चाई हूँ !!
मेरे पास क्या कुछ नहीं है – देह / दिमाग / दिल /दया / दूरदृष्टि /…..?
लेकिन मुझे समझते हैं – दहशत / दरिद्रता / दुःख / दीनता/…का पर्याय !!
इन सभी रूढ़ियों को मिटाना है – अपने पराक्रम से ।
दिखाना है – मैं मजबूत हूँ ,मजबूर नहीं !!
मैं ममता / प्रेम /करुणा /……तक ही सीमित नहीं !
बहादुरी की प्रतीक / साहस की पर्याय भी हूँ ।
मैं अपनी लौ की रोशनी से –
चाहती हूँ समाज को आलोकित करना ।
लिया है संकल्प – ऐसी लौ – प्रस्फुटित कर ही लूँगी चैन की साँस !!
दुनियां की कोई शक्ति – कुचल न सके जिसे !!!
“घरेलू हिंसा बंद करो “
घर की इज्जत होती नारी, निर्भर परिवार की जिम्मेदारी।
करें उसका सम्मान सभी जन, प्रसन्नचित रखें उसका मन।
परिवार करेगा प्रगति इससे, फैलेगा यश सर्वत्र जिससे।
उल्टी राह चलते हैं कुछ जन, कु विचार रहते हैं उनके मन।
मारपीट करते उत्पीड़न, कई जलाते नारी का तन।
गाली गलौज दिन रात की बातें, कटती सिसक सिसक कर रातें।
कोई घर में पीकर आते, व्यर्थ में उस पर बड़बडाते।
चुप रहना उसकी लाचारी, कर भी क्या सकती बेचारी।
सुलगाकर हाथ में बीड़ी, गिनता वह नारी की पीढ़ी।
पर बेचारी कर्म की मारी, ऐसे ही बिताती जिंदगी सारी।
कब तक सहन करेगी हिंसा, भला इसी में चलें अहिंसा।
कुंठित रहेगी जो गृह नारी, पड़ेगा यह पुरुष को भारी।
धन-इज्जत मिट जाएगी सब, पछताकर क्या होगा हो जाएगा तब।
बच्चों का बचपन बिखर जाएगा, ऐसा कर तू क्या पायेगा।
सीखो प्यार-प्रेम से रहना, अपशब्द कभी मुंह से ना कहना।
विकास पथ पर परिवार बढ़ेगा, सफलता की सीढ़ी चढ़ेगा।
मकान तब ही बनते ही घर, हिल मिल रहते जब नारी नर।
सही परिवार की यही निशानी, महिला से प्यार की बोलें वाणी।
महिला को माने गृह देवी सब, फूल खिलेंगे खुशियों के तब।