1 मई विश्व श्रमिक दिवस पर विशेष ” मजदूर गाथा “
– डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
सदा मजबूरी मे मजदूर ,
रोजगार ढूंढने जाता दूर ।
छोड़ अपना घर – परिवार ,
धक्का खाता है हर बार !
गरीबी से है गहरा रिश्ता ,
दुःख की चक्की मे है पिसता।
पत्नी भी करती मजदूरी,
यह समझो उनकी मजबूरी !
बच्चे फाँकते हर पल धूल ,
खिल नहीं पाते सुख के फूल !
काम के घण्टे होते जादा ,
और मजदूरी मिलती आधा !
सड़क पर ही बर्साती तान ,
बना लेते हैं अपना मकान ।
शिक्षा – स्वास्थ्य से रहकर दूर ,
रोगों से जीवन चकना चूर !
जन्म से पहले कर्जा होता ,
और कर्जे में ही मर जाता !
अन्याय अत्याचार है सहता ,
पर कभी नहीं है कुछ कहता !
कराह रहा हरपल मजदूर ,
चिन्ता करें अब उसकी दूर ।
सभ्य समाज की यही निशानी ,
बनायें श्रमिक की सुखी कहानी ।
इनका जीवन जो अंधेरी रात ,
बदलकर बनायें उसे प्रभात ।