नई टिहरी (7) स्विट्जरलैंड…. बहुगुणा का हस्तक्षेप,अठूर वालों का आंदोलन*
विक्रम बिष्ट।
नई टिहरी। परियोजना कालोनियों के निर्माण के साथ 1970 के दशक के उत्तरार्ध में टिहरी बांध के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हुआ था। यह विस्थापन की संभावित त्रासदी को लेकर अठूर क्षेत्र के ग्रामीणों का आंदोलन था। टिहरी शहर लगभग मूकदर्शक बना रहा था। ग्रामीण बड़ी संख्या में गिरफ्तार किए गए थे। बताया गया है कि बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को गिरफ्तार आगराखाल-नरेंद्र नगर के बीच जंगल में ले जाकर छोड़ दिया गया था ।
सुंदरलाल बहुगुणा तब बांध के समर्थक थे। बांध के खिलाफ तकनीकी तर्क वरिष्ठ वकील वीरेंद्र दत्त सकलानी ने जुटाए थे । स्वतंत्रता सेनानी सकलानी जी का नगर पालिका अध्यक्ष का कार्यकाल टिहरी में सम्मान के साथ याद किया जाता था। उनके व्यापक अध्ययन के आधार पर टिहरी का मुकदमा देश की सर्वोच्च अदालत से लेकर संसद की याचिका समिति तक लड़ा गया था । पर्यावरण चेतना की वैश्विक लहर के साथ बड़े बांधों के औचित्य पर सवाल उठने लगे तो टिहरी बांध भी इसके दायरे में आ गया।
बांध प्रभावित ग्रामीणों को शांत करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च स्तर के पुनर्वास एवं प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरियां देने के वादे किए। बेशक, वह आंदोलन ही उस श्रेय का हकदार रहा है। वरना योजना आयोग की स्वीकृति के बाद सरकार ने परियोजना क्षेत्र में निर्माण की अन्य गतिविधियों पर रोक लगा दी थी ।
हेमवती नंदन बहुगुणा मुख्यमंत्री बनने के बाद जब टिहरी आए तो उनको इस प्रतिबंध पर आश्चर्य हुआ। बताते हैं बहुगुणा जी ने कहा कि बांध जब बनेगा तब बनेगा लोग अपना जीवन बसर कैसे करेंगे। उन्होंने निर्माण कार्यों पर लगा प्रतिबंध हटा दिया । अठूर के लिए नहर बनवाई। सिर्फ कल्पना कीजिए बहुगुणा जी मुख्यमंत्री न होते और उनके हटने के बाद अठूर के लोगों ने भारी कष्ट सहकर संघर्ष न किया होता तो आज क्या स्थिति होती।
हालांकि सरकारी तंत्र ने प्रभावित जनता के प्रति दोयम दर्जे की नीति का पूरी तरह परित्याग नहीं किया था । उस दौर के कुछ शासनादेश इसके मुंह बोले प्रमाण हैं। जिनमें कुछ के असली होने पर भी शक होता है। जारी….