बुधू: फेंकू महाराज की जय हो
फेंकू सर्वत्र विराजते हैं। खासकर दिल्ली में हों तो फेंकने में जाता कुछ नहीं है । नीरज चोपड़ा की तरह भाला नहीं सिर्फ, फेंकना पड़ता है मुंह जुबानी।
आप बिजली मुफ्त में फेंक सकते हैं। मुफ्त हो तो फेंक ही सकते हैं। पैसे देने पड़े तो फेंकने की सोच भी नहीं सकते। एक तेल नमक का व्यापारी बाबा और दूसरा गांधीवादी दिल्ली में भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने बैठे, खूब फेंके। लोगों को बताया कि सभी लखपति होने वाले हैं। विदेशी बैंकों से पैसा वापस आने वाला है। सबके खाते में 15-15 लाख रुपये। जनता का खुश होने में क्या जाता ? वोट फेंक दिए। लेकिन दिल्ली तो दिल वालों की है। जो फेंके नहीं वह दिलवाला कैसे हो सकता है।
श्रीमान फेंकुओं की भिड़ंत में एक दिन दिल्ली का ओरिजनल फेंकू जी बाजी मार गए। अब फेंकू महोदय को लगता है कि बिना उत्तराखण्ड के भारतवर्ष में राज नहीं हो सकता है। फेंकू महाराज जी देहरादून पधारे और फेंक दिए। उत्तराखंड में अपना सूबेदार भी नियुक्त कर दिया। स्वागत है। बहुत-बहुत स्वागत।