किशोर ने महामहिम राष्ट्रपति के बयान का किया स्वागत
नई टिहरी। वनाधिकार आन्दोलन के संस्थापक और हिमालय बचाओ आन्दोलन के संयोजक किशोर उपाध्याय ने महामहिम राष्ट्रपति जी के “माँ गंगा के बिना भारत अधूरा है।” बयान का स्वागत किया है और उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया है।https://youtu.be/uDTnvTjCIpc
श्री राष्ट्रपति जी को भेजे अपने पत्र में उपाध्याय ने कहा है कि माँ गंगा और उसकी सहायक नदियों के बिना तो भारत ही नहीं अपितु विश्व ही संकट में पड़ जायेगा।
माँ गंगा के न रहने का अर्थ है, हिमालय की वर्तमान स्थिति का परिवर्तन हो जाना, हिमालय में स्थित हिम का समाप्त हो जाना,
अगर, यह स्थिति उत्पन्न होती है तो हिन्द महासागर के कई तटीय देशों का तो नामो-निशान मिट जायेगा और कई देशों के तटीय क्षेत्र कई मीटर पानी के भीतर होंगे।
भारत की जल, अन्न और सीमा सुरक्षा भी ख़तरे में पड़ जायेगी।
उपाध्याय ने कहा कि वे गत तीन दशकों से इन मुद्दों को वाणी देने का काम कर रहे हैं और तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष स्व. श्री प्रणव मुखर्जी जी का ध्यान उन्होंने आकृष्ट किया था और उसका आरम्भ गंगा प्रसूता पुण्य भूमि उत्तरकाशी से करने का अनुरोध किया था।
उपाध्याय ने कहा कि श्री मुखर्जी ने पूरे योजना आयोग को उत्तरकाशी और टिहरी इस आशय से भेजा कि गंगा की सततता-निर्मलता और हिमालय बचाने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?
राजनैतिक-सामाजिक संगठनों और चुने हुये प्रतिनिधियों से सघन विचार-विमर्श के उपरान्त यह सहमति बनी की मध्य हिमालय के लिये एक सतत समावेशी विकास की नीति बनानी चाहिये, जिसमें जल, जंगल और ज़मीन पर जनता को अधिकार प्रदान किये जायँ।हिमालय के लिये केन्द्र में अलग मन्त्रालय गठित किया जाय।गंगा प्रसूता धरती टिहरी और उत्तरकाशी को मध्य हिमालय के विकास के मॉडल के रूप में विकसित किया जाय और उस मॉडल के आधार पर मध्य हिमालय का विकास किया जाय।
श्री मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने इस बात की राष्ट्रपति जी के समक्ष रखा और श्री मुखर्जी ने केन्द्र सरकार को इस सम्बन्ध में निर्देशित भी किया था।
उपाध्याय ने पत्र में राष्ट्रपति जी से अनुरोध किया कहा है कि अविलम्ब वनाधिकार क़ानून 2006 को लागू किया जाय और जंगलों पर आधारित समुदायों को वनों पर उनके पुश्तैनी हक़-हक़ूक़ बहाल किये जायँ और क्षति पूर्ति के रूप में “परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार पक्की सरकारी नौकरी, केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण , बिजली पानी व रसोई गैस निशुल्क , जड़ी बूटियों पर स्थानीय समुदायों को अधिकार, जंगली जानवरों से जनहानि होने पर परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी तथा ₹ 50 लाख क्षति पूर्ति, फसल की हानि पर प्रतिनाली ₹ 5000/- क्षतिपूर्ति, एक यूनिट आवास निर्माण के लिये लकड़ी, रेत-बजरी व पत्थर निशुल्क, शिक्षा व चिकित्सा निशुल्क, उत्तराखंडी OBC घोषित हों, भू-क़ानून बने, जिसमें वन व अन्य भूमि को भी शामिल जाय और राज्य में तुरन्त चकबंदी हो।”
मण्डल कमीशन के 27% आरक्षण के सभी मानक़ों पर मध्य हिमालय के निवासी खरे उतरते हैं और उन्हें केंद्र सरकार की आरक्षण की परिधि में शामिल किया जाय, तभी गंगा की अवरिलता और निर्मलता सुनिश्चित हो पायेगी और भारत के गौरव को सम्पूर्णता प्राप्त होगी।
उपाध्याय ने राष्ट्रपति जी से अनुरोध किया है कि वे राष्ट्र की सर्वोच्च शक्ति हैं, राष्ट्र और गंगा के गौरव की रक्षा हेतु वे इन सुझावों को स्वीकार करने हेतु अपनी केन्द्र व राज्य सरकारों को आदेशित करेंगे।