तृतीय विश्व युद्ध की ओर…??
नवीन सुयाल “अज्ञ”
रसिया और यूक्रेन के झगड़े ने अब तृतीय विश्व युद्ध का रुख कर लिया है।जहां यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद नाटो देशों का साथ न पाकर अकेले ही युद्ध लड़ रहा है वही विश्व भर में आम नागरिक मुखर होकर “No WAR” कहते हुए विरोध दर्ज कर रहे हैं साथ ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन की तुलना हिटलर से भी की जा रही है।
सामान्य जनमानस की सहानुभूति यूक्रेन की वैश्विक राजनीति से नहीं बल्कि यूक्रेन के निर्दोष नागरिकों से है।एक तरफ जहां यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन को बातचीत का न्योता दे चुके हैं वही पुतिन इस बात पर अड़े हुए हैं कि पहले यूक्रेन राष्ट्रपति सरेंडर करें ।
रूस से लगे हुए सीमांत देश बेलारूस के एक विपक्षी महिला नेता ने भी मुखर होकर कहा कि हम इस युद्ध में रूस के साथ नहीं है यदि वर्तमान सरकार साथ देती है तो यह निंदनीय है। बेलारूस जैसे छोटे एवं रूस के सीमांत देश भी इस घटना को अमानवीय मान रहे हैं वही यूक्रेन को इस जंग में झोंकने वाला अमेरिका अभी तक चुप है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाईडेन ने यूक्रेन में अपनी सेना भेजने से इनकार किया है। हां नाटो देशों से रूसी व्यापार प्रतिबंधित करने को अवश्य अमेरिका ने कहा है किंतु जब मुखर युद्ध चल रहा हो तो जवाब युद्ध ही होता है ना कि प्रतिबंध।
रूस की इस हरकत से तथा अमेरिका के दोगलेपन से यूरोपीय छोटे-छोटे देश जो कि नाटो में शामिल है,वे दुविधा में है। वे चिंतित है की यूक्रेन पर कब्जे के साथ रूस उनके और नजदीक आ बैठेगा और अमेरिका का चरित्र जगजाहिर हो चुका है। वाजिब है कि सभी छोटे देश अपनी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
इसी क्रम में रुस पर लगे प्रतिबंधों पर प्रतिक्रिया करते हुए फ्रांस ने “इंग्लिश चैनल” में एक रूसी जहाज को जब्त कर लिया है। फ्रांस ने दिखाने की कोशिश की है कि नाटो का प्रतिनिधित्व करने वाला अमेरिका ,भले ही अपनी शर्तों पर खरा न उतरा हो परंतु फ्रांस यूक्रेन के साथ खड़ा है फ्रांस की सड़कों पर, जापान में ,ब्रिटेन में, अमेरिका में, जर्मनी में, ऑस्ट्रेलिया में, और स्वयं रूस में आम नागरिक रूस के विरोध में “NO WAR” की तख्तियां लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।
लेकिन कहीं ना कहीं रूसी राष्ट्रपति पुतिन कुछ लंबा सोच कर चले हैं। लंबा अर्थात अगर तृतीय विश्व युद्ध भी हुआ तो पुतिन तैयार नजर आ रहे हैं। तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बयान ,यूएनओ में निंदा प्रस्ताव का गिरना, यूक्रेन द्वारा बातचीत का न्योता देना, यूरोपीय देशों में रूस पर प्रतिबंध लगना , इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद रूसी राष्ट्रपति पुतिन पहले दिन से जिस आक्रामकता से युद्ध में उतरे थे, वही आक्रामकता चौथे दिन भी जारी है ।
अमेरिका ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को सुरक्षित राजधानी कीव से बाहर निकलने में मदद देने का प्रस्ताव रखा, परंतु जहां बात स्वाभिमान की हो वहां राष्ट्र का प्रथम नागरिक स्वयं राष्ट्रपति देश को छोड़कर निकल जाए यह यूक्रेन के खून में तो बिल्कुल नजर नहीं आता। अमेरिका के प्रस्ताव के जवाब में यूक्रेन राष्ट्रपति ने कहा मदद देनी ही है तो हथियार दो। मैं और मेरा परिवार देश छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।
दूसरी तरफ पुतिन बार-बार अमेरिका को उकसाए जा रहे हैं ।रूस को लगता है कि बिना किसी मदद के यूक्रेन इतनी देर नहीं टिक सकता था, अतः वे छोटे-छोटे बयानों से अमेरिका की टोह लेना चाहता है। जैसे कि कल शाम का बयान था कि-” यूक्रेन की मदद में देखे गए अमेरिकी ड्रोन””
और आज शाम का बयान यूक्रेन के लिए है कि –
“” यूक्रेन सेना रासायनिक विस्फोटक का इस्तेमाल कर रही है”‘
1941 के अमेरिका-जापान युद्ध के बाद अमेरिका ने जापान के सेना रखने पर प्रतिबंध लगा दिया था जापान ने यह कह कर स्वीकार किया कि- किसी देश के हम पर आक्रमण करने पर सब तरह के बचाव की जिम्मेदारी अमेरिका की होगी।
अब यूक्रेन के साथ-साथ रुस वहां से भी अमेरिका को छेड़ रहा है। रूस एक तरह से अधिकाधिक नाटो देशों से टकरा रहा है। क्योंकि रूस ने “ब्लैक सी” में खड़े केवल नाटो के जहाज को ही टारगेट नहीं किया बल्कि उसने 26 फरवरी को “पेसिफिक ओसियन” में खड़े जापान के “नामूरा” नामक जहाज को भी टारगेट किया है। इस बात की पुष्टि स्वयं जापानी मीडिया ने की है। क्या रूस चाहता है कि अमेरिका प्रतिक्रिया करे ??
जापान जबकि नाटो देशों में शामिल नहीं है परंतु 1941 के बाद से सुरक्षा की जिम्मेदारी के समझौते के तहत वह अमेरिका के सैन्य संरक्षण के अंतर्गत है तो रोज केवल यूक्रेन ही नहीं साथ ही साथ अमेरिका ,फ्रांस ,जापान ,और बेलारूस को भी एक तरह से टारगेट कर रहा है ।
27 फरवरी आज सुबह ही रूसी सेना ने यूक्रेन में अधिकाधिक गैस लाइनों को टारगेट किया है। वही यूक्रेन की तरफ से आशा के विपरीत बयान दिया गया कि-
“क्या हुआ रूस(पुतिन) आप तो कह रहे थे 2 घंटे में राजधानी पर कब्जा कर लेंगे””
जहां बीती शाम यूक्रेन के राष्ट्रपति के सुर ये थे कि-
” शायद आप मुझे आखरी बार जिंदा देख रहे हैं””
वही सुबह-सुबह इस प्रकार का रूस को चिढाता हुआ बयान कहीं ना कहीं किसी बड़ी घटना की ओर संकेत कर रहा है ।
यूरोपीय देशों ने रूस के विश्व स्तर के एक्सपोर्ट और इंपोर्ट पर प्रतिबंध लगाते हुए उसे स्विफ्ट तकनीक से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है। स्विफ्ट वह पेमेंट सिस्टम है जिसके द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक धन का आदान-प्रदान होता है। एक तरह से स्विफ्ट “बैंकों का अंतरराष्ट्रीय संगठन” है ।जिसमें लगभग 200 देशों के 11000 बैंक जुड़े हुए हैं। रूस के स्विफ्ट से बाहर होते ही सर्वाधिक व्यापार पर असर जर्मनी और ब्रिटेन को होने वाला है। अभी तक यही दोनों देश इस प्रतिबंध के हक में नहीं थे किंतु आखिरकार रुस की बढ़ती हरकतों से यह दोनों भी इस हक में आ गए ।
कुल मिलाकर यूक्रेन जूझ रहा है और रूस रुकने को तैयार नहीं है।
लगभग 700 भारतीय नागरिकों के सुरक्षित भारत पहुँचने की सरकार ने पुष्टि की है । वहीं यूक्रेन सरकार ने आज शाम चेतावनी दी है राजधानी कीव में मौजूद कोई भी भारतीय नागरिक मूवमेंट न करे ,हालात नाजुक हैं ।रूसी राष्ट्रपति ने गूगल से रिक्वेस्ट की है कि रूसी मीडिया चैनल यूक्रेन में यूट्यूब पर दिखाए जाएं ,हालांकि इसके पीछे उनकी मंशा क्या है यह स्पष्ट नहीं हो पाया ।
(व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है ये सब युद्ध की बर्बरता, बर्बादी, और अपना कब्जा दिखाकर पुतिन यूक्रेन सेना और नागरिकों के मनोबल को गिराने का सायकोलोजीकल गेम खेलना चाहते हैं )
यूक्रेन अभी तक अमेरिका, ब्रिटेन,बेलारूस, कनाडा, जर्मनी एस्टोनिया, टर्की ,अजरबैजान, जैसे निकटवर्ती देशों से मदद की गुहार लगा चुका है। जिसमें से जर्मनी ने “एंटी टैंक वेपन” और 500 मिसाइलें मदद में देने की बात कही है।
ऑस्ट्रेलिया भी हथियार भेजने को राजी हो गया है। हॉलैंड ने हवा में मार करने वाली मिशाइल और चेक रिपब्लिक भी हथियार भिजवा रहा है ।अमेरिका ने हथियार के साथ साथ 630 बिलियन डॉलर देने की बात कही है ।फ्रांस ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं तेज कर दी है,और हथियार देने की बास्त कही है । लातविया ,लिथुआनिया और कनाडा देशों ने रूस की हवाई यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिए हैं।
वही पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने वर्तमान राष्ट्रपति को उनकी नीतियों को लेकर जमकर लताड़ा है साथ ही पुतिन की इस चाल की तारीफ करते हुए उन्हें “जीनियस”कहा है ।
अब कहीं ना कहीं अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन पर दबाव होगा क्योंकि अगर वे यूं ही चुप बैठे रहे तो नाटो संगठन में सम्मिलित देशों को जवाब देना मुश्किल होगा।
जबकि ध्यान रहे इस झगड़े की जड़ “नाटो के विस्तार” को लेकर ही है।आज दिन की खबर के अनुसार नाटो ने अपनी “डिफेंस फोर्स” को एक्टिवेट कर दिया है। जिसमें की 30 देशों के सैनिक शामिल है। किंतु भयावह यह है कि पुतिन ने भी अपने परमाणु हथियारों को अलर्ट पर रहने की बात कही है ।
तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विश्व इस समय “तृतीय विश्वयुद्ध ” के मुहाने पर खड़ा है । देर शाम भारतीय प्रधानमंत्री ने भी एक खास बैठक का आयोजन रखा है ।यह देखना भी दिलचस्प होगा कि यदि विश्व युद्ध हुआ तो एशियाई देशों की किस तरफ से क्या भूमिका रहेगी।
ये पोस्ट लिखे जाने के बाद 09 pm जार्जिया से भी एक बयान आया है जिसमें कहा गया है कि –
“‘ जंग जल्दी ही खत्म होने की उम्मीद””।
दरअसल जिस वार्ता के लिए यूक्रेन राष्ट्रपति ने बेलारूस के गोमेल जाने से इनकार किया ,पुनः उस वार्ता के लिए बेलारूस ने मध्यस्थता निभाते हुए बॉर्डर पर प्रिपियात नदी किनारे आने का निमंत्रण दिया है ।
काश कि ये वार्ता सफल हो और युद्धविराम हो ।