शुभ संकल्प से ही श्रेष्ठ आविष्कार का जन्म होता है – रसिक महाराज
देवी भागवत कथा के तीसरे दिन नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि यदि आप सकारात्मक रहेंगे तो जीवन सकारात्मक बनेगा और नकारात्मकता को अपनाएंगे तो जीवन नकारात्मक बनेगा। मनुष्य की बुद्धि भ्रम का शिकार होती है तो संकल्प की परिणति धुंधकारी के रूप में होती है। उत्तम परिणाम की प्राप्ति के लिए वैचारिक स्पष्टता और शुभ-संकल्प की आवश्यकता है। बड़े लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कल्पना शक्ति और दूरदर्शिता आवश्यक है। पर, बिना विवेक के यह घातक भी हैं। विचार जब ओवरफ्लो होते हैं, तो भाव बन जाते हैं। यह भावना का बहाव ही बहा ले जाता है। कोई बाँध चाहिए जो इस बहाव का सदुपयोग कर ले। इसीलिए हमारे यहाँ गणेशजी की अत्यधिक पूजा की जाती है। वह विवेक के देवता हैं।
यह तो स्पष्ट है कि उन्हें अकारण ही प्रथम पूज्य नहीं बनाया गया है। उनका विवेक शुभ से जुड़ा है और जब भी कोई कार्य शुभ से आरम्भ होगा, विवेक से गुजरेगा तो उसे शत-प्रतिशत सफल होना ही है। इसलिए हर कार्य से पहले गणपति जी की आराधना होती है। संकल्प की शक्ति बहुत अधिक है, इसलिए ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करें कि ‘हे ईश्वर ! जिस मन से अनुभव, चिन्तन और धैर्य धारण किया जाता है, जो इंद्रियों में एक तरह की ज्योति है, वह मन न बिगड़े। हमारा मन शुभ-संकल्प वाला हो।’ व्यक्ति के संकल्प से उसका समस्त जीवन संचालित होता है। शुभ संकल्प से ही श्रेष्ठ आविष्कार का जन्म होता है। इसलिए, धर्म को आत्मसात करें और गृहस्थ जीवन में संयम का जीवन जीयें। शुद्ध आहार, शुद्ध विचार और शुद्ध चित्त से ही हमारा आचरण शुद्ध होगा और श्रेष्ठ विचारों का प्रादुर्भाव होगा।
हमारे धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में अनन्त ऊर्जा समाई है। हमारे यहाँ श्रीमद्भागवत को ज्ञानयज्ञ और विचार-यज्ञ भी कहा गया है। हमारी सनातन संस्कृति नर से नारायण बनने की है। श्रीगुरु मुख से, संतों-सत्पुरुषों से सत्संग सुनें। सत्संग से ज्ञान चरित्र और साधना का सौंदर्य खिलता है। व्यक्तित्व दो-तीन तरह का होता है। वैचारिक व्यक्तित्व में शुभ-संकल्प कर कार्य करें। आध्यात्मिक व्यक्तित्व में साधना का बल, गुरु परंपरा का बल और भगवान की सूक्ष्म कृपा होती है। अतः जिस दिन आपके भीतर वैराग्य भाव आयेगा, वह दिन आपका सबसे शुभ दिन होगा