कथा बनारस: ‘प्रलेक प्रकाशन समूह’ की एक महत्वपूर्ण योजना
कथा बनारस:
काशी’ से बूढ़ा कौन है…कौन हो सकता है? होंगे ‘पुराण’ पुराने पर इसका पुराना माना जाना भी ‘बहुत’ पुराना है। जरा ठहरो और सोचो, इस ‘काशी’ में ‘बनारस’ कहां है, ‘काशी-कथा’ में ‘कथा-बनारस’ कितना है?
जी, ‘कथा-बनारस’ है यह। कहानी में ‘बनारस’ है, यह बनारस की ‘कहानी’ है। कहना तो यह कि यह ‘कहानी’ ही की ‘कहानी’ है।
भला संभव हुआ है कि ‘कहानी’ बांहें खोले और इस ‘बनारस’ को आंक ले, समेट ले, उकेर ले, बिखेर दे। कोई भी ‘कहानी’ कैसे इस ‘नेति-नेति’ को ‘अथ और इति’ में शासित कर सके।
काशी की गरिमा के सम्मुख बनारस की आभा मलिन नहीं है। बनारस ‘लोक-वैराग्य’ है और काशी ‘परलोक-चिंता’। समय के साथ बनारस कुछ ‘चटक’ होकर सामने रहा और काशी ‘धूसर’। बनारस ‘ताल’ है और काशी ‘सुर’।
बनारस में कविता की तमीज भी है और कहानी का वैभव भी। बनारस में साहस है और धुन भी। बनारस तमाम सरलीकरण के सामने हठीला सत्याग्रह है। बनारस समय में भी है और समयातीत भी। बनारस सामाजिकता में एकांत है और एकांत में सामाजिकता। बनारस की नागरिकता में हिस्सेदारी-जिम्मेदारी भी है और अराजक मस्ती भी। बनारस में हड़बड़ी नहीं है, न जिरह की, न फैसले की। बनारस जितना मुखर है, उतना मौन भी। बनारस कहे और अनकहे के बीच ठिठका-सा है।
‘बनारस’ को जानना ‘काशी’ को कुछ अधिक जानना है। ‘बनारस’ मनुष्य का स्थायी ठिकाना है और ‘कथा-बनारस’ इस स्थायी ठिकाने का अस्थायी पता…।
“कथा बनारस” में कुल 5 खंड हैं। (प्रेषक : गोलेन्द्र पटेल)