सिस्टम पर सवाल उठाती चिट्ठी-2 (विक्रम बिष्ट)
टिहरी गढ़वाल 27 जनवरी । अपर मुख्य सचिव ने 16 जनवरी 2015 को पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के ऑनलाइन प्राप्त आवेदन पत्रों की सूची जिला समाज कल्याण अधिकारियों को भेजी थी। निर्देश दिया गया था कि संबंधित छात्रों का सहायक समाज कल्याण अधिकारियों के माध्यम से भौतिक सत्यापन कराया जाए। जिला समाज कल्याण अधिकारी टिहरी गढ़वाल ने पूर्णानंद डिग्री कालेज के छात्रों के सत्यापन का काम नई टिहरी कैम्प कार्यालय प्रभारी जीतमणि भट्ट को सौंप दिया। विमला भट्ट के मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में इसे अपने पति (जीतमणि भट्ट) के खिलाफ साजिश बताया है।
यहाँ कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जो कुएं में भांग की कहावत के चरितार्थ होने की पुष्टि करते हैं। अपर मुख्य सचिव समाज कल्याण विभाग के आदेश के बाद 16 फरवरी को शासन के मुख्य सचिव जिलाधिकारियों को छात्रवृत्ति के आवेदकों का भौतिक सत्यापन जिला स्तरीय अधिकारियों से करवाने का आदेश जारी करते हैं, कोई शक ?
जिला समाज कल्याण अधिकारी के आदेश का पालन करते हुए जीत मणि भट्ट ने 19 फरवरी को पूर्णानंद डिग्री कॉलेज में जाकर उपलब्ध कराये गये दस्तवेजों के आधार पर छात्रों का भौतिक सत्यापन किया और उपस्थित छात्रों की सत्यापन रिपोर्ट जिला समाज कार्यालय को दी। 24 फरवरी को जिलाधिकारी द्वारा नामित जांच अधिकारी ने डिग्री कालेज जाकर भौतिक सत्यापन की कार्यवाही की। 26 फरवरी को जिलाधिकारी ने मुख्य सचिव को वह रिपोर्ट भेजी।
26 मार्च को समाज कल्याण निदेशक एवं जनजाति कल्याण निदेशक ने जिला समाज अधिकारियों को निर्देश दिया कि जिलाधिकारियों द्वारा करायी गयी जांच के आधार पर पात्र छात्रों को 50 प्रतिशत छात्रवृत्ति का ऑनलाइन भुगतान किया जाए। जिला समाज कल्याण अधिकारी टिहरी गढ़वाल ने मई में छात्रवृत्ति भुगतान कर दिया। किस जांच रिपोर्ट के आधार पर ? अब दोहराने की जरूरत नहीं है कि मुख्य सचिव के आदेश पर की गई जांच के आधार पर ही होनी चाहिए थी। शासनादेश में दो बातों पर विशेष जोर दिया गया था। एक, आवेदन से लेकर भुगतान तक पूरी प्रक्रिया ऑनलाईन सम्पन्न कराई जाए। दो, किसी भी अनियमितता की स्थिति में जिला समाज कल्याण अधिकारी जिम्मेदार होंगे। बड़ा सवाल) कि मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव समाज कल्याण कार्यालय के बीच केवल इस प्रकरण पर कोई संवाद और तालमेल नहीं था? या, यह सिस्टम का सामान्य आचरण बन गया है! जिसमें पकड़े जाने पर बलि देने की कोशिशें होती हैं। पटवारी से लेकर लोक सेवा आयोग परीक्षा तक आमतौर पर ‘आम लोग’ ही शिकार होते हैं।
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