31 अगस्त को प्रातः काल 5:37 से 7:06 तक रक्षाबंधन का “विशुद्ध मुहूर्त”-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
देहरादून 23 अगस्त। हर साल की तरह इस वर्ष भी रक्षाबंधन की तारीख को लेकर पूरे देश में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, अगस्त का महीना शुरू होने से ही सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया एवं तमाम चैनलों पर सनातन धर्म विशेष रूप से ज्योतिष से जुड़े हुए लोगों के बीच इस विषय पर बहस चल रही है, क्योंकि आचार्य गण कहीं 30 तो कहीं 31 अगस्त को रक्षाबंधन का त्यौहार बता रहे हैं।
जब कोई धर्म सम्मत और” शास्त्र सम्मत” निर्णय नहीं हो पाया तब उत्तराखंड के प्रसिद्ध श्रीमद् भागवत कथा वाचक एवं ज्योतिषाचार्य वेद वेदांग संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग के पूर्व प्राचार्य डॉ भानु प्रकाश देवली के माध्यम से विद्वानों एवं आम जनता ने सोशल मीडिया पर “उत्तराखंड ज्योतिष रत्न” एवं सहायक निदेशक संस्कृत शिक्षा उत्तराखंड सरकार आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल से विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी इस विषय पर अपना स्पष्ट निर्णय देते हुए सनातन धर्म की रक्षा करने की गुहार लगाई गई।
विद्वानों एवं जनता के अनुरोध पर लंबी प्रतीक्षा के बाद ज्योतिष जगत में अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकते सितारे आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने आज इस विषय पर अपनी चुप्पी तोड़ी है, और एक बड़ा एवं शास्त्र सम्मत निर्णायक बयान जारी किया है , देश एवं प्रदेश सहित पूरे विश्व की जनता को रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार की अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने कहा है, कि रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के प्यार-स्नेह का प्रतीक है। यह त्योहार हर वर्ष की भांति श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, लेकिन इस बार मालिन मास होने की वजह से श्रावण माह दो महीने का है, जिसमें बीच में भद्रा पड़ रही है, जिसके चलते रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 30 और 31 अगस्त को मनाने को लेकर उलझन बनी हुई है। इसलिए इसकी तारीख को लेकर विद्वानों एवं लोगों के बीच में बड़ा कन्फ्यूजन है? आखिर रक्षा बंधन कब है? किस समय है शुभ मुहूर्त?
रक्षाबंधन क्या है?
रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के लिए सबसे बड़ा पर्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल श्रावण या सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों की रक्षा का प्रण लेते हैं और उन्हें अच्छा सा उपहार देते हैं।
रक्षाबंधन के दौरान सबसे अधिक वर्जित भद्रा काल कब पड़ रही है?
मुख्यमंत्री द्वारा उत्तराखंड ज्योतिष रत्न एवं ज्योतिष वैज्ञानिक की उपाधि से सम्मानित आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल सूक्ष्म ज्योतिषीय विश्लेषण करते हुए बताते हैं ,कि इस साल पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10:58 मिनट से शुरू होगी, जो 31 अगस्त 2023 को सुबह 07:05 तक चलेगी। लेकिन वैदिक ज्योतिष गणित के अनुसार पूर्णिमा के साथ ही भद्राकाल भी शुरू हो जाएगा।
भारतवर्ष के पूर्वोत्तर राज्यों एवं विश्व के उन उन देशों जहां सूर्योदय आधे घंटे बाद होता है को छोड़कर भद्रा की निवृत्ति के बाद रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त 2023 रात 09:01 से 31 अगस्त सुबह 07:05 तक रहेगा। लेकिन 31 अगस्त को सावन पूर्णिमा सुबह 07: 05 मिनट तक है, इस समय भद्रा काल नहीं है। इस वजह से 31 अगस्त को पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड की बहनें अपने भाई को राखी बांध सकती हैं, जबकि भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं पूर्वोत्तर राज्यों सहित विश्व के उन देशों में जहां पर सूर्योदय आधे घंटे के अंतर में होता है, वहां पर 30 अगस्त को भद्रा के पुचछकाल में रक्षाबंधन संबंधी समस्त कार्य हो सकते हैं/
उपा कर्म एवं ऋषि तर्पण का शुभ मुहूर्त 2023
व्यास गद्दी से 700 से अधिक श्रीमद् भागवत कथाओं का वाचन करने वाले आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं ,कि भद्रा का दोष रक्षाबंधन के लिए विशेष रूप से होता है, इसलिए यदि बहुत आवश्यक हो तो “आपत्ति काले मर्यादा नास्ति ” सिद्धांत का अनुसरण करते हुए 30 अगस्त को मध्यान्ह व्यापिनी पूर्णिमा में पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के शुक्लयजुर्वेदी आचार्य एवं उनके शिष्य ऋषि तर्पण एवं उपा कर्म कर सकते हैं ,परंतु रक्षाबंधन कदापि नहीं करवाना है, उन्होंने स्पष्ट किया कि यद्यपि राखी बांधने का मुहूर्त- रात 9 बजकर 01 मिनट से भद्रा की निवृत्ति के बाद शुरू हो रहा है, और विशुद्ध मुहूर्त का इंतजार करने में परेशानी महसूस करने वाले लोग रात्रि समय भी रक्षाबंधन कर सकते हैं ,परंतु यदि विशुद्ध मुहूर्त की बात की जाए तो 31 अगस्त को ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 5:37 से अर्थात सूर्योदय काल से सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक है। और शुद्ध मुहूर्त 31 अगस्त को पूरे दिन भर राखी बांधने के लिए है/ कुछ लोग फिर इस भ्रम में पढ़ेंगे कि उस दिन 7:05 के बाद भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है, तो वहां भी उदय व्यापिनी का सूत्र लागू होगा और भाद्रपद मास प्रतिपदा तिथि 1 सितंबर को मानी जाएगी।
भद्रा में राखी क्यों नहीं बांधते हैं?
शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है ,कि शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी, जिस वजह से रावण के पूरे कुल का सर्वनाश हो गया था। इसलिए ऐसा माना जाता है कि बहनों को भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। यह भी कहा जाता है कि भद्रा काल में राखी बांधने से भाई की उम्र कम हो जाती है।
इस संदर्भ में शास्त्रों का उदाहरण देते हुए “ज्योतिष के निर्णय सिंधु “कहे जाने वाले आचार्य डॉ चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने कहा कि ” भद्रायम ना आचरेत श्रावणी फाल्गुनी तथा ” कुछ विद्वानों का मत है ,कि 30 तारीख को रक्षाबंधन होना चाहिए किंतु 30 अगस्त को सुबह 10:59 से पूर्णमासी तिथि के साथ ही भद्रा प्रारंभ होकर रात्रि 9:00 बजे तक है ,और यदि कहा जाए कि रात्रि 9:00 के बाद रक्षाबंधन किया जाए तो वह भी गलत है, क्योंकि उदय व्यापिनी चतुर्दशी तिथि का प्रभाव रहेगा सिर्फ रात्रि व्यापिनी होने से व्रत वाले लोगों का पूर्णमासी का व्रत रह सकता है, जबकि दूसरे दिन 31 अगस्त को पूर्णमासी तिथि 7:06 तक है ,तथा सूर्योदय 5:56 पर हो रहा है ,इसलिए शास्त्र के प्रमाण के अनुसार
“या तिथि समनुप्राप्य उदयंयाति भास्कर:,
सा तिथि:सकलाज्ञेया स्नान जपादिषु।।
और दूसरा प्रमाण देवल।ऋषि। के अनुसार “पूर्वाह्नो दैविक काल:”व्यास। पूर्वाह्न में देवकार्य करना सर्वोत्तम है”
मीमांसा शास्त्रानुसार “श्रावणे उपाकर्म पौर्णमास्यां पूर्वाह्निकेअनुष्ठेयं यदिस्यासूर्योदये।”
भविस्योत्तरपुराणानुसार
“संम्प्राप्तेश्रावणस्यान्ते पौर्णमास्यां दिनोदये।स्वानंद”
और निर्णय सिंधु के प्रमाण के अनुसार
“कुर्वीतमतिमान्श्रुतिस्मृति विधानत:।
उपाकर्मादिचैवोक्तंऋषिणां तर्पणम्।। उपाकर्मरक्षावन्धनंभद्रादिदोष
रहितं श्रावण पौर्णमास्यांसूर्योदये सति पौर्वाह्निकमेवप्रशस्तम्।।” निर्णयसिन्धु”
निष्कर्ष रूप में ऋषि तर्पण और उपा कर्म यदि 30 अगस्त को भी कर दिए जाते हैं, तो अपराध की श्रेणी में नहीं आएंगे परंतु रक्षाबंधन 30 तारीख को कदापि नहीं हो सकता है , यद्यपि रक्षा सूत्र बंधन 31 अगस्त को प्रातः काल 5:37 से 7:06 तक हो जाना चाहिए, परंतु यदि विलंब हो भी जाता है ,तो दोष दायक नहीं रहेगा क्योंकि ऊपर मैंने जो शास्त्रों के प्रमाण दिए हैं ,उनके अनुसार पूर्णिमा तिथि को 31 अगस्त को उदय व्यापिनी होने की वजह से पूरे दिन बल मिलेगा साथ ही उस दिन गुरुवार है और पंचमी दशमी तथा पूर्णमासी तिथियां यदि गुरुवार के दिन उदय व्यापिनी होती है ,तो उन्हें “मुहूर्त चिंतामणि” ने “पूर्णा तिथि “की संज्ञा दी है ,जो शुभ कार्यों के लिए सर्वोत्तम मानी गई है , इसलिए बहने पूरे दिन भर आराम से राखी बांध सकती हैं, जबकि भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष 1 सितंबर से प्रारंभ होगा क्योंकि उस दिन उदय व्यापिनी प्रथमा तिथि होगी।
- सबसे पहले रक्षाबंधन किसने बनाया था?
सबसे पहले देवराज इंद्र और उनकी बहन इंद्राणी ने राखी बांधी थी।
पुराणों के अनुसार युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस रक्षासूत्र ने इंद्र की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। तभी से बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधने लगीं।
- राखी किसका प्रतीक है?
ये पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, स्नेह और प्यार का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हुए आरती उतारती हैं। साथ ही भगवान से उनके जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं भाई प्रेम रूपी धागा बंधवाकर उम्रभर बहन की रक्षा का संकल्प लेते हैं और उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार देते हैं।
आचार्य का परिचय – आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल वर्तमान में सहायक निदेशक शिक्षा विभाग उत्तराखंड शासन में सेवारत हैं। निवास स्थान-56/1 धर्मपुर देहरादून, मोबाइल नंबर-9411153845 है।
उपलब्धियां:-
- वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा की सबसे पहले भविष्यवाणी की थी।
- वर्ष 2015 में शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड।
- वर्ष 2016 में उत्तराखंड ज्योतिष रत्न सम्मान।
- वर्ष 2017 में ज्योतिष विभूषण सम्मान।
- वर्ष 2019 में ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान।
- वर्ष 2020 में प्रथम वर्चुअल टीचर्स राष्ट्रीय अवार्ड।
- दिसम्बर 2022 में दोबारा उत्तराखंड ज्योतिष रत्न सम्मान।