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धुंआ धुंआ सा है गगन, जंगल भी है स्वाह-स्वाह

धुंआ धुंआ सा है गगन, जंगल भी है स्वाह-स्वाह
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धुंआ धुंआ सा है गगन, जंगल भी है स्वाह – स्वाह । हर ओर मच रहा हाहाकार ,भीषण ताप का है प्रभाव । बोलो कौन है जिम्मेदार, मानव करता प्रकृति पर अत्याचार ,पहले आग लगाता है खुद , फिर बारिश की करता पुकार । धुंआ धुंआ सा है गगन—–

खेत – खलिहान सब सूख गए हैं , वानर करते और उत्पात ।हरा भरा प्रदेश हमारा, क्यों अब हो रहा है, वीरान। काफल , आम और खुबानी मिलने हो गए हैं दुश्वार ।जल स्रोत सब सूख रहें है ,कैसे बुझेगी जीवों की प्यास। धुंआ धुंआ सा है गगन—–

वृक्ष कट रहे लगातार ,कंक्रीट का हो रहा विस्तार , संतुलन जब बिगड़ जायेगा, प्रकृति करेगी अवश्य प्रहार । मौसम सारे बदल रहे हैं ,जाड़ा ,गर्मी और बरसात ।खुद ही सोचों , कैसे होगा जन – जन का जीवन खुशहाल। अभी चेतो आज ही बोलो ,हम नहीं करेंगे , प्रकृति पर अब और, कुठाराघात। अपनी धरती को हरा-भरा कर , कर देंगे हम मालामाल ।धुंआ – धुंआ सा है गगन——

डा. शशि बाला वर्मा

प्राचार्य ,राजकीय महाविद्यालय पोखरी पट्टी ,क्वीली ,टिहरी गढ़वाल ।


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Govind Pundir

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