गैरसैंण: सपनों की राजधानी या सिर्फ़ चुनावी मुद्दा?

उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण एक बार फिर चर्चाओं में है। कभी राज्य आंदोलन का प्रतीक रहा यह छोटा कस्बा आज भी अपने पूर्णकालिक राजधानी बनने के सपने को पूरा नहीं कर पाया है। वर्ष 2014 में राजधानी का दर्जा मिलने के बावजूद गैरसैंण में न मेडिकल कॉलेज है, न विश्वविद्यालय, और न ही पर्याप्त स्वास्थ्य व प्रशासनिक सुविधाएँ।
स्थानीय लोग कहते हैं, “राजधानी का नाम मिला, पर सुविधाएँ अब भी गाँव जैसी हैं। यहाँ रोजगार, स्कूल, अस्पताल—सबकी कमी है।” दरअसल, देहरादून अब भी उत्तराखंड का वास्तविक प्रशासनिक केंद्र बना हुआ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि गैरसैंण की भौगोलिक स्थिति इसे इको-सिटी के रूप में विकसित करने के लिए आदर्श बनाती है। यहाँ पर्यटन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश कर स्थानीय रोजगार सृजित किए जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए सरकार को ठोस योजना और दीर्घकालिक दृष्टि अपनानी होगी।
जैसे-जैसे 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, गैरसैंण एक बार फिर नेताओं की घोषणाओं में शामिल हो गया है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “हर चुनाव में गैरसैंण की चर्चा होती है, लेकिन धरातल पर काम नहीं दिखता। अगर सरकार गंभीर होती, तो अब तक यहाँ रेल या एयर कनेक्टिविटी होती।”
उत्तराखंड की अस्मिता का प्रतीक गैरसैंण आज भी एक उम्मीद पर टिका है। सवाल वही है—क्या यह कभी सच्ची राजधानी बन पाएगा, या फिर आने वाले चुनावों में फिर सिर्फ़ वादों की झड़ी लगेगी? जनता जवाब की प्रतीक्षा में है।