अम्मा
डॉ. सुरेंद्र दत्त सेमल्टी
गढ़ निनाद न्यूज़, नई टिहरी * 10 मई 2020।
दुनिया के जितने भी रिश्ते सबसे अधिक भाती है अम्मा।
देकर जन्म कोख से अपनी, पालती पग-पग पर है अम्मा।
जल थल नभ में जो कुछ भी है, उन सबसे अच्छी है अम्मा।
प्यासे का पानी भूखे का भोजन, है अंधे की लाठी अम्मा।
हम सब भाई बहन जब खाते, पेट भर गया कहती अम्मा।
बिस्तर में हमें सुलाकर, नींद लेती नंगे में अम्मा।
परिश्रम की प्रतिमूर्ति बनकर,करके हमें सिखाती अम्मा।
मकान को बनाती है घर, अपने सद्कर्मों से अम्मा।
काम बोझ किसे कहते हैं, कभी ना जान पायी अम्मा।
हर पल प्रसन्नता का भाव लिए, खुशी खुशी कर लेती अम्मा।
बनती बच्चों के संग बच्ची, ऐसी कला छुपाये अम्मा।
शिष्टाचार किसे कहते हैं, बिना कहे बतलाती अम्मा।
बुरा जो करने आता कोई,सुधरने का पाठ पढ़ाती अम्मा।
अहित समाज का जब कोई चाहता, विकराल रूप धरती तब अम्मा।
रिश्तों की जगह चादर फटती, तुलपाई तब करती अम्मा।
आग के गोले जब बरसाते, मुसलधार बरसाती तब अम्मा।
संस्कारों की गठरी देकर, ससुराल भेजती बेटी को अम्मा
जहां-जहां भी विचरण करती, समरसता पाठ पढ़ाती अम्मा।
कोई भी बीमार जब होता,डाक्टर तब बन जाती अम्मा।
जीवन में अंधकार जब घिरता, प्रकाश पुंज बन जाती अम्मा।
परिस्थिति देख कठोर-कोमल,स्वभाव बनाती हर दिन अम्मा।
कभी मिठाई कभी खटाई, कर्मफल हमको देती अम्मा।
बेटी के हाथ पीले करके,भाग्य पर इठलाती अम्मा।
देश के खातिर शहीद बेटे, पर गर्व से भर जाती अम्मा।
शिक्षा संस्कार बच्चों को देना, अपना कर्तव्य समझती अम्मा।
वंशवृद्धि सम्मान देखकर, बहुत हर्षित होती है अम्मा।