न्याय नहीं तो श्रद्धांजलि का पाखंड क्यों ?
विक्रम बिष्ट*
गढ़ निनाद न्यूज़* 3 अक्टूबर 2020
नई टिहरी। मुलायम सिंह यादव स्वयं को सबसे बड़ा लोहियावादी बताते हैं। बहन मायावती बाबा साहब अंबेडकर को अपना आदर्श। इन दोनों की साझी सरकार ने 2 अक्टूबर को मुजफ्फर नगर के तिराहे पर आजाद भारत के सबसे शर्मनाक कांड को अंजाम दिया था। इस सरकार को टिकाए हुए थी गांधीवादी (?) कांग्रेस।
लखनऊ गेस्ट हाउस में मुलायम सिंह यादव के समाजवादी कार्यकर्ताओं ने मायावती पर हमला किया था तो उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि मुजफ्फरनगर कांड में महिलाओं से जरूर दुर्व्यवहार हुआ होगा। वरना 6 अक्टूबर को मायावती लखनऊ में मुजफ्फर नगर फायरिंग को उचित बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की जरूरत नहीं है। बरहाल भाजपा ने बसपा सपा गठबंधन छुड़वा कर मुलायम सरकार को लुढ़का दिया था, अन्यथा कांग्रेस का वरदहस्त तो उस सरकार को आखिर तक मिलता रहता।
अगस्त 1954 में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया नैनी जेल में बंद थे। 12 अगस्त को हाई कोर्ट उनके केस का फैसला सुनाने वाला था। इस बीच डॉक्टर लोहिया की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की केरल सरकार की पुलिस ने एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोलियां चला दी। 7 लोग मारे गए। डॉ लोहिया को जब यह सूचना मिली तो उन्होंने मुख्यमंत्री पीटी पिल्लै को पत्र भेजकर नैतिक आधार पर त्यागपत्र देने को कहा। साथ ही अधिकारियों को दंडित करने एवं निष्पक्ष जांच कराने की सिफारिश भी की। पार्टी ने उनकी मांग अस्वीकार कर दी। एक मात्र विपक्षी दल की सरकार का तर्क भी दिया। लोहिया ने कहा मैं उस राक्षसी सरकार का समर्थक नहीं हो सकता जो आदमियों को मक्खियों की तरह मारे और खुद को लोकतांत्रिक बताएं।
व्यापक निंदा के बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा यदि मुजफ्फर नगर में महिलाओं पर अत्याचार की बात सच हुई तो मैं राष्ट्र से माफी मांग लूंगा। बाद में उन्होंने उत्तराखंड की मातृशक्ति से माफी मांगी लेकिन इसमें न्याय कहां हुआ?