उत्तराखंड राज्य आंदोलन, भुलाये गये नींव के पत्थर-2
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद समाचार* 21 फरवरी 2021
नई टिहरी। दिवाकर भट्ट को पहली बार टिहरी में सरदार प्रेम सिंह के आवास पर देखा था। उनका नाम तो सुना था। सरदार प्रेम सिंह का नहीं। वहां इंद्रमणि बडोनी भी थे। उन्होंने मुझे नहीं पहचाना। लगभग 4 साल पहले मैंने उनके द्वारा निर्देशित माधो सिंह भंडारी नृत्य नाटिका में दोहरी भूमिका निभाई थी। केदार नृत्य टोली नायक और माधो सिंह भंडारी के पुत्र गजे सिंह की। आखिरी दिन मुझे किसी बात पर गुस्सा आ गया और मैंने गजे सिंह वाले कपड़े फाड़ फेंक दिए। वहां सभी लोग मुझसे बड़े थे। कोई बडोनी जी को बुला लाया। कार्यक्रम का समापन गजे सिंह के बलिदान के बिना हुआ।
सरदार प्रेम सिंह राज्य निर्माण के प्रबल समर्थक थे और टिहरी बांध के विरोधी। ऐसे पत्रकार दूर दराज की खबरें मानो उड़कर उनकी खुली खिड़की से अंदर पहुंच जाती थी। न जाने कितने लोगों को उन्होंने उत्तराखंड राज्य का पाठ पढ़ाया। इस मांग के खिलाफ एक शब्द सुनना पसन्द नहीं करते थे।
कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार से पहली मुलाकात सरदार जी के आवास पर हुई थी। उन्होंने मुझे बताया कि कैप्टन साहब मेरे बारे में जानना चाहते थे। कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार पुराना दरबार में रहते थे।
उनके बारे में इतनी बातें प्रचलित थी कि हम लोग उनको देखते ही दाएं बाएं हो जाते। फिर तो उनके घर आना जाना हुआ। अपने पुस्तकालय में उन्होंने मुझे खुली छूट दे रखी थी। उन्होंने ही मुझे एक पुराना अखबार दिलाते हुए बताया कि बद्री दत्त पांडे ने ही सबसे पहले उत्तराखंड राज्य की मांग उठाई थी। दरअसल वह उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े रहे थे। स्वयं उन्होंने अपनी सक्रियता का जिक्र नहीं किया।
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