ताजिया निकाल कर इमाम हुसैन की शहादत को किया याद
नई टिहरी। आज पैगंबर इस्लाम मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को याद करते हुए अकीदतमंदों ने ताजिया निकाल कर उनकी जियारत की इस के बारे में बताते हुए मोहर्रम इंतजामिया कमेटी के सदर मुशर्रफ अली ने बताया कि इस्लामिक नए साल की दस तारीख को नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72 साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ कोे जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए थे।
इमाम हुसैन को उस वक्त के मुस्लिम शासक यजीद के सैनिकों ने इराक के कर्बला में घेरकर शहीद कर दिया था। लिहाजा, 10 मोहर्रम को पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद ताजा हो जाती है। किसी शायर ने खूब ही कहा है- कत्ले हुसैन असल में मरग-ए-यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद।
दरअसल, कर्बला की जंग में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हर धर्म के लोगों के लिए मिसाल है। यह जंग बताती है कि जुल्म के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए, चाहे इसके लिए सिर ही क्यों न कट जाए, लेकिन सच्चाई के लिए बड़े से बड़े जालिम शासक के सामने भी खड़ा हो जाना चाहिए।
हक की आवाज बुलंद करने के लिए शहीद हुए र्बला के इतिहास को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि यह महीना कुर्बानी, गमखारी और भाईचारगी का महीना है, क्योंकि हजरत इमाम हुसैन रजि. ने अपनी कुर्बानी देकर पुरी इंसानियत को यह पैगाम दिया है कि अपने हक को माफ करने वाले बनो और दुसरों का हक देने वाले बनो।
आज बौराड़ी में अकीदतमंदों ने ताजिया निकाल कर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। इस अवसर शबिल का भी इंतजाम किया गया। ताजिया जुलूस इमामबाड़ा से शुरू हो कर करबला में जाकर खत्म हुआ। जहां अकीदतमंदों ने गमगीन माहौल में ताजिया सुपुर्द ए खाक किए गए।
इस अवसर पर मुहर्रम इंतजामिया कमेटी के सदर मुशर्रफ अली,इमरान खान महबूब बक्श , सज्जाद बक्श, सद्दाम बक्श ,रमजान खान , दिलशाद , हसनैन , अब्बास, साजिद, समीर, शानू अहमद शहजाद , ऐनम हुसैन , मुशब अली आदि शामिल रहे।