तीन अक्टूबर को द्वादशी पर करें गृहस्थ जीवन का त्याग करने वाले पितरों का श्राद्ध, राहुकाल में न करें तर्पण -स्वामी रसिक महाराज
हरिद्वार। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार के परमाध्यक्ष स्वामी रसिक महाराज के अनुसार पितृ पक्ष की द्वादशी पर मृत्यु लोक को प्राप्त हुए पितरों के साथ ही उन पितरों के श्राद्ध का विधान हैं, जो गृहस्थ जीवन छोड़ का संन्यास ले लिए थे। इसे ‘सन्यासी श्राद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है।
साधु-सन्यासी बन एक पूर्वजों के नाम पर इस दिन करना चाहिए श्राद्ध ।
द्वादशी पर घर छोड़ कर चले गए पितरों के नाम भी श्राद्ध किया जाता है। इस श्राद्ध को सन्यासी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है
पितृ पक्ष की द्वादशी पर श्राद्ध से राष्ट्र कल्याण और अन्न की मात्रा में वृद्धि होने के बारे में भी शास्त्रों में लिखा है। मान्यता है कि द्वादशी के श्राद्ध से संतति, बुद्धि, शक्ति, पुष्टि, दीर्घायु व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन मां मंगला गौरी मंदिर के समीप भीम गया, गो प्रचार व गदालोल तिथि पर श्राद्ध करने का विधान होता है। साथ ही फल्गु नदी में स्नान व तर्पण करने से पहले मां मंगला गौरी की सीढ़ियां के बगल में स्थित भीम गया वेदी पर पिंडदान करना चाहिए। यदि गया में श्राद्ध संभव नहीं तो इसे किसी भी नदी के किनारे किया जा सकता है और इसके बाद देवी मंगला गौरी का दर्शन करना चाहिए।
द्वादशी पर श्राद्ध सन्यासियों और वैरागियों के लिए निर्धारित है, जो गृहस्थ जीवन त्याग देते हैं और वापस कभी अपने घर नहीं लौटते। साथ ही इस दिन ऐसे पितरों का भी श्राद्ध करना चाहिए जो घर से निकल गए और कभी लौट कर नहीं आए और उनकी मृत्यु हो गई हो। गुमनाम साधु-सन्यासी और घर से चले गए जीवित पितृजन, जिनका कोई अता-पता न हो उनका भी इस दिन ही श्राद्ध करने का विधान है। इसलिए इस श्राद्ध को नदका श्राद्ध कहते हैं।