प्रवेश उत्सव पर खास रिपोर्ट
(घनसाली से लोकेन्द्र जोशी)
सरकार के द्वारा आज सरकारी स्कूलों एवं कालेजों मे छात्र संख्या बढ़ाने के लिए “प्रवेश उत्सव” रखा गया था। जो कि बड़ा अटपटा विषय है ? सरकार ने स्वीकार तो किया कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में छात्र संख्या कम क्यों है? लेकिन वर्षों से हल जानते हुए भी उसका समस्या का हल जानते हुए भी नहीं निकाला है।प्रश्न है कैसे सरकारी स्कूल कालेजों में छात्र संख्या बढ़ेगी? यह गंभीर विषय सरकार ने अपने सामने रखी है? और मजबूर शिक्षकों पर छोड़ दी है। प्रवेश उत्सव के नाम पर छात्र संख्या बढ़ाने के लिए मेरी माने तो श्रद्धांजलि ही होगी। कारण सरकार जानती हैकि पलायन आयोग का गठन तभी किया गया और यह स्पष्ट है कि, गुणवता पूर्वक शिक्षा न होने के कारण पलायन जारी है। और पलायन होने के कारण ही छात्र संख्या का न होना है! अर्थात गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उसके साथ चिकित्सा का होना पलायन का कारण है। दोषी कौन है? इस पर नजर डालेंगे।
इस बार 31 मार्च को बड़ी संख्या में शिक्षक सेवानिवृत्त हुए है। उतराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षण एवं यदा कदा प्रशिक्षण संस्थान शिक्षा के साथ-साथ रोजगार के लिए बड़ा उद्योग रहे हैं।जिसमें कि शिक्षा से वंचित बेटियों का शिक्षा से लाभांवित होना ऐतिहासिक सफलता है।परंतु अब तो स्कूल बड़ी संख्या में शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान बंद होते जा रहे हैं।जिससे बेरोजगारी बढ़ने से पलायन भी अधिक हो रहा है। जो चिंता का विषय है। और इस पर सारे समाज और उनके नेताओं के द्वारा मौन साध रखा है। जो कि गलत है।
स्कूल और स्कूली शिक्षक पहाडों की कभी मजबूत अर्थिकी होते थे। जो कि समाज के जरूरत मंद लोगों के वक्त बेवक्त सहारा रहे हैं। शिक्षकों के बदोलत कई लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में बारह महीनों छोटा मोटा रोजगार मिलता था। और बहुत भले एवं जीवन के बुरे समय में अपनी बैंकों में जमा पूजीं की तरह काम आते रहने के अंगिनित उदाहरण हैं।
हालांकि आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य के कारण पलायन के पंखों ने बड़ी उड़ाने भरी,। और इन्ही कारणों से शिक्षकों ने भी तराई का रास्ता अखत्यार किया हुआ है । और पलायन पढ़ा। शिक्षक नेता लोकेन्द्र सिंह रावत, आर. बी.सिंह केशर सिंह, रावत तथा लक्ष्मी प्रसाद भट्ट के साथ पूर्व प्रधानाचार्य कुँवर सिंह रावत,का मानना है कि,शिक्षकों की भारी कमी और अन्य समुचित ब्यवस्था शिक्षण संस्थानों में न होने के कारण पलायन बढ़ा, और पलायन का मुख्य कारण पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा का समुचित ब्यवस्था का न होना है। छात्र संख्या सरकार का झूठा बहाना है। जिसे रोकना होगा। और सरकार के हाथों से खास कर पर्वतीय क्षेत्रों के शिक्षा विभाग से मिलने रोजगार का बड़ा और सम्मानित उद्योग बचाना होगा। शिक्षक समाज का दर्पण और मार्ग दर्शक रहा जिसका उद्देश्य समाज का स्वर्णिम भविष्य रहा। शिक्षकों से यह अधिकार दिशा विहीन स्वार्थी नेतृत्व के हाथों छीना जा रहा है—-क्रमश: