बाल कविता: चिट्ठी अब बनीं इतिहास
-डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
अब चिट्ठी नजर न आती ,
बीते दिनों में जो थी भाती ।
अब हो गई है वह पुरानी ,
बता रही थी हमको नानी ।
करके लम्बा तय सफर ,
तब जा के पहुंचती थी घर ।
डाकिया जब-जब आता ,
सबके मन को था भाता ।
कागज का छोटा टुकड़ा ,
था मिटाता मन का दुखड़ा ।
दिल के भाओं को उतार ,
करती थी नदी-नाले पार ।
छोटी-बड़ी सुख-दुख बात ,
कटते कैसे हैं दिन – रात ?
बतलाती थी सब चिट्ठी ,
लगती थी चीनी सी मिट्ठी !
चिट्ठी अब बनीं इतिहास ,
महत्व रहान उसका खास ।
चिट्ठी लिखित दस्तावेज ,
लिखते थे रखकर के मेज ।
उसकी महिमा पहिचानें ,
सबका हित निहित जानें ।
फिर से उसको अपनायें ,
निहित लाभ हरकोई पायें ।