आपदा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है भिलंगना घाटी
लोकेन्द्र जोशी*
गढ़ निनाद न्यूज़* उत्तराखंड में लगभग हर जिले में यदाकदा दैवीय आपदा घटित होती रहती है लेकिन इस दृष्टि से भिलंगना घाटी, अति संवेदनशील है। जहां बादल फटने की हर वर्ष घटनाएं घटित होती रहती हैं। प्रशासन को भी पता है । कई बार विभिन्न सामाजिक और राजनैतिक संगठनों ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि, तहसील घनसाली के घुत्तू और बूढ़ा केदार में आपदा प्रबंधन की टुकड़ी वर्षांत के सीजन में तैनात रहे, ताकि आपदा की कठिन घड़ी में बचाव एवम् राहत कार्य समय से हो सके।
इसके साथ ही आपदा के समय और पूरे बरसात के समय में दोनों क्षेत्रों के बड़े गाढ़ गदेरों में पक्के पुलों के न होने से और पानी उफान पर होने के कारण सड़कों पर मोटर वाहन और पैदल आर पार करना जान जोखिम में डालना है। ऐसे में गधेरों पर आवागमन हेतु पैदल पुलों को निर्मित किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
भिलंगना घाटी के दोनों क्षेत्र, भिलंगना और बाल गंगा घाटी के बूढ़ा केदार क्षेत्र के दर्जन भर गावं और घुत्तू के गंगी, रीह आदि के ग्रामीणों के साथ स्थानीय प्रशासन के लोग भी क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी के न होने से सूचनाओं का आदान प्रदान करने में बड़ी दिक्कतों का सामना करते हैं।
अभी विगत दिवस गंगी क्षेत्र में बादल फटने की घटना इसका ताजा उदाहरण है। बादल फटने की सूचना देने के लिए पीड़ित परिवार को ऊँची चोटी पर जाकर पटवारी को सूचना देनी पड़ी। प्रशासन को चाहिए कि उक्त इलाके में आपदा प्रबंधन इकाई की एक टीम कम से कम बरसात के सीजन में तो मुस्तैद रहनी चाहिए, ताकि संकट की घड़ी में राहत और बचाव कार्य आसानी से हो सकें।