किसान है क्रोध
गढ़ निनाद समाचार।
गोलेन्द्र पटेल की कविताएं
निंदा की नज़र
तेज है
इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं
बाज़ार की मक्खियाँ
अभिमान की आवाज़ है
एक दिन स्पर्धा के साथ
चरित्र चखती है
इमली और इमरती का स्वाद
द्वेष के दुकान पर
और घृणा के घड़े से पीती है पानी
गर्व के गिलास में
ईर्ष्या अपने
इब्न के लिए लेकर खड़ी है
राजनीति का रस
प्रतिद्वंद्विता के पथ पर
कुढ़न की खेती का
किसान है क्रोध !
2.
ईर्ष्या की खेती
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मिट्टी के मिठास को सोख
जिद के ज़मीन पर
उगी है
इच्छाओं के ईख
खेत में
चुपचाप चेफा छिल रही है
चरित्र
और चुह रही है
ईर्ष्या
छिलके पर
मक्खियां भिनभिना रही हैं
और द्वेष देख रहा है
मचान से दूर
बहुत दूर
चरती हुई निंदा की नीलगाय !
—जारी ।