*** भौं कुछ ***

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*विक्रम बिष्ट

उत्तराखंड आने वाला कल 

          दृश्य-एक 

सरकारी दफ्तर। अफसर और नौकरी का आकांक्षी एक पहाड़ी युवक। 

अफसर- अच्छा! तुम उत्तराखंड के मूल निवासी हो। कब से? 

युवक-सर मेरे दादा परदादा और..

अफसर- बहुत बढ़िया। इसीलिए तो कहते हैं कि पहाड़ी लोग सीधे-साधे होते हैं। वरना तुम्हारे जैसे काबिल युवक यहां छोटी-छोटी नौकरी के लिए भटकते। 

युवक-  जी क्या मुझे यह नौकरी मिल सकती है?

अफसर- क्यों नहीं । लेकिन तुम्हारा स्थाई निवास प्रमाण पत्र कहां है?

युवक-  सर मूल निवास प्रमाण पत्र तो दिया है।

अफसर- मूल निवास से क्या होता है! पहले की बात और थी। तब दोनों चले जाते थे। अब नहीं चलते। 

युवक-  लेकिन सर, मैं तो मूल निवासी

अफसर- देखो भइया! दुनिया बहुत प्रगति कर चुकी है। तुम अभी मूल निवास से चिपके हो। इस तरह चिपके रहने से उत्तराखंड का क्या भला हो सकता है। तुम चाहते हो कि तुम्हारे बच्चे, नाती, पोते भी यहीं चिपके रहें। ऐसे तो उत्तराखंड की प्रगति कभी नहीं हो सकती है। स्थाई निवास की बात ही कुछ और है। यहां की जमकर सेवा करते। बाकी कमाई का निवेश कहीं भी कर सकते हैं। आज भी लोग पहाड़ पर जमकर कमाई करते हैं। निवेश देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, रामनगर में करते हैं । ऊपर की कमाई जितनी मोटी नीचे मैदान में उतने ज्यादा मजे! 

युवक- सर मेरे दादाजी उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी थे। 

अफ़सर- अरे वाह, तब तो तुम्हारे पिताजी को सरकारी नौकरी मिली होगी। 

युवक-  नहीं सर। प्रशासन ने मेरे दादाजी का राज्य आंदोलनकारी प्रमाण पत्र किसी और को दे दिया था। 

अफसर-  बहुत बुरा हुआ। कोई बात नहीं। 

युवक-  सर दूसरे प्रदेशों में तो मूल निवास प्रमाण 

अफसर-  देखो बेटा..। मैं तुम्हें इतनी देर से यही समझा रहा हूं । यह देवभूमि राज्य है । यहां दूसरे प्रदेशों जैसी व्यवस्था नहीं चल सकती है । यहां चिपको आंदोलन भी हुआ था। जो चिपके रहे, लोग उनको भूल गए । जिन्होंने मोह त्यागा, दुनिया में प्रसिद्ध हुए। तुम यह मोह त्याग दो। खैर , तुम्हारी मर्जी लेकिन स्थाई निवास प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण तुमको यह नौकरी नहीं मिल सकती । 

दृश्य-दो

स्वरोजगार दफ्तर। अफसर और मुंबई से आया एक युवक। 

अफसर-  आपके पास अनुभव और कुछ पूंजी भी है । उत्तराखंड को  इसकी जरूरत है। आपको सरकारी मदद चाहिए । लेकिन ये सुविधाएं तो सिर्फ स्थाई निवासियों के लिए है। 

युवक-  सर मैं यहां का मूल निवासी हूं। मेरा परिवार सामान्य गरीब परिवारों में से एक था। इसलिए पिताजी को घर छोड़ मुंबई जाना पड़ा। फिर उन्होंने हमें वही बुला लिया। हाड़ तोड़ मेहनत करके अच्छी शिक्षा दिलाई। वह हमेशा कहते थे पढ़ लिख कर काबिल बन जाओगे तो वापस उत्तराखंड लौट जाना। वहां तुम्हारे लाखों भाई- बहनें है। जिनके सपने तरूणाई की शुरुआत में ही मुरझाने लगते हैं । तुम लौटकर नई शुरुआत करना । जितनों को हो सके साथ लेना । जहां तक जा सको नई राह दिखाना। पिताजी ने जो पैसे बचाये थे, मुझे दे दिए। मैं यहां…

अफसर-  मैं तुम्हारी बात समझ रहा हूं (भावुक होकर) तुम्हारे पिताजी और तुम्हारी भावनाओं की कद्र करता हूं। लेकिन मजबूर हूं। तुम्हारी परवरिश शिक्षा दीक्षा मुंबई में हुई है।  20- 22 साल मुंबई में रहे। स्थाई निवासी होने के लिए 15 साल उत्तराखंड में रहना जरूरी है। फिर चाहे मूल निवासी ही क्यों न हों। 

युवक-  लेकिन सर… 

अफ़सर- सॉरी बेटा।

दृश्य-3

जिला मुख्यालय स्थित सेवा योजना कार्यालय के बाहर एक पढ़ी-लिखी लड़की खड़ी है। रोजगार के लिए पंजीकरण करवाना चाहती है । बंद खिड़की पर नोटिस चस्पा है, लिखा है नौकरियां नहीं है। कृपया समय बर्बाद ना करें । 

अंदर से कुछ आवाजें आ रही हैं। लड़की हिम्मत करके आगे बढ़ दरवाजा खोलती है। कमरा शराब की बोतलों से भरा हुआ है । पीछे की खिड़की पर खरीदारों की लाइनें लगी हैं। 

“अकेली निराश लड़की अपने गांव वापस लौट रही है।”

दृश्य- 4 

मंत्री निवास । कुछ युवक, युवतियां घेरे हुए हैं । उनकी शिकायतें- रोजगार, मूल निवास। मंत्री जी का अपना मूल निवास ठेठ पहाड़ पर खाली हो चुका गांव है। स्थाई निवास देहरादून है। बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं। समझ नहीं पा रहे हैं , क्या जवाब दें।

दृश्य- 5 

विधानसभा में जोरदार बहस हो रही है। किस बात पर हो रही है, किसी को कुछ पता नहीं है। बहस करने वालों को भी नहीं। दर्शक दीर्घा में बैठे दो युवक भौंचक्के हैं। अरे हम तो विधान सभा की बैठक देखने सुनने आए थे । शायद गलती से किसी हाट बाजार पहुंच गए । 

तभी नीचे कोई जोर से चिल्लाया। ऐसे तो हमारा उत्तराखंड बर्बाद हो रहा है। इसका अपमान बंद करो। यह एक अकेली आवाज थी जो सभी ने सुनी। दर्शक दीर्घा में बैठे युवाओं ने समझी भी। इस आवाज में पहाड़ का दर्द और बेबसी थी। सत्ता पक्ष की पहली कतार की पहली कुर्सी पर आसीन दबंग नेता उठा और चिल्लाया, खामोश! तुम्हारा उत्तराखंड मेरे ठेंगे पर । सभा समाप्त हुई। 

ओम नित्यानंद-2  नारायण -2 ! 

दृश्य- 6 

दिल्ली में पार्टी हाईकमान के उत्तराखंड प्रभारी का दफ्तर। फिलहाल सुनसान। उत्तराखंड के राजनीतिक भविष्य लिखी तख्ती  खिड़की पर लटक रही है। मिशन 2027 मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर, अल्मोड़ा के टिकटार्थियों के लिए नो एंट्री। देहरादून, पौड़ी, नैनीताल को थोड़ी छूट। 

मिशन 2032 और उसके बाद देहरादून, पौड़ी , नैनीताल की भी नो एंट्री।


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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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