Ad Image

सद्गुरु की कृपा, सत्संग और साधना से होता है कृष्ण चेतना का जन्म – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

सद्गुरु की कृपा, सत्संग और साधना से होता है कृष्ण चेतना का जन्म – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
Please click to share News

चंडीगढ़। महावीर मुनि सभा सैक्टर 23 द्वारा आयोजित जन्माष्टमी महोत्सव में प्रवचन करते हुए नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि कृष्ण किसी के लिए अवतार हैं, तो किसी के लिए गीता का उपदेश देने वाले ब्रह्मनिष्ठ हैं। एक कृष्ण के इतने रूप, इतने चरित्र हैं कि जनमानस बस इतना ही कह सका, ‘हे कृष्ण! तुम सोलह कला सम्पूर्ण हो। इससे अधिक हम और कुछ नहीं कह सकते।’ श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण अवतार, महा अवतार कहते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म क्यों हुआ? भक्तों के उद्धार के लिए और दुष्टों के संहार के लिए।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

जब-जब धर्म की हानि होगी, जब-जब अधर्म  बढ़ेगा, तब-तब दुष्टों का नाश करने और साधु अन्त:करण के व्यक्तियों का कल्याण करने मैं आता हूं। श्रीकृष्ण ने गीता में यह वचन स्वयं कहा है। कृष्ण शब्द का अर्थ है कि जो आकर्षित करने की शक्ति रखता है, जिसके भीतर चेतनता पूरे शिखर पर है। जैसे चुम्बक का काम है लोहे को अपनी ओर खींचना, ऐसे ही संसार का कल्याण करने को, जीवों का उद्धार करने को, जीवों को सन्मार्ग पर लाने को, खुद भगवान अपने ही रूप को एक जगह एक विशेष रूप में समाहित कर लेते हैं। उनके इस प्रकटीकरण को ‘अवतार’ कहा जाता है। 

उन्होंने कहा कि कृष्ण सत्य के पक्षधर हैं। वह पूर्ण पुरुष हैं, परमज्ञानी हैं, ब्रह्मनिष्ठ हैं, महापुरुष हैं, लेकिन जीवनभर एक साधारण व्यक्ति की भांति हर किसी के साथ मिल-जुल कर रहे। जैसे वह अर्जुन से लेकर कुब्जा दासी तक सबके प्रिय मित्र थे, वैसे ही उन्होंने अपने आचरण से दुर्योधन से भी मित्रता ही निभाई।

कहा जाता है कि जिस दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस दिन बहुत बारिश थी, बिजली कड़क रही थी, अंधेरी रात थी। कृष्ण के पैदा होते ही माता देवकी और पिता वसुदेव के सारे बंधन खुल गये। ऐसे ही जिस दिन तुम्हारे भीतर कृष्णचेतना का जन्म होगा, उस दिन सारे बंधन खुल जायेंगे। न कोई मृत्यु का बंधन, न पाप का बंधन, न जीवभाव का बंधन बचेगा, सब बंधन खुल जायेंगे। 

 एक जन्माष्टमी है बाहर की और एक है भीतर की। बाहर की जन्माष्टमी मनाना इसलिए जरूरी है कि हमें याद आ जाये कि अपने भीतर भी अभी उतना ही अंधकार है, जितना कृष्ण के जन्म से पहले उनके माता-पिता के आसपास था। तुम्हारा मन भी मोह, ममता, भय, क्रोध के बंधनों मंे पड़ा है। इन सब बंधनों से मुक्ति अगर चाहते हो, तो फिर भीतर की जन्माष्टमी मनाओ। यह भीतर की जन्माष्टमी वे ही मना पायेंगे जिनके भीतर  कृष्णचेतना का जन्म हुआ हो। सद्गुरु की कृपा, सत्संग और साधना करते हुए अकस्मात कृष्णचेतना का प्रस्फुटन हो जाता है।

जन्माष्टमी सिर्फ कृष्ण जन्म नहीं है, एक जन्माष्टमी अपने अंदर करने का आग्रह है। जब मन में चारों ओर अंधियारा होता है, बंधन होते हैं, तो कैसे एक भाव जन्म ले कि सारे बंधन टूट जाएं और सारा अंधियारा मिट जाए, यही हैं कृष्ण और यही है जन्माष्टमी। इस अवसर पर मन्दिर सभा के प्रधान श्री दिलीप चन्द गुप्ता, पं दीप राम शर्मा, सुनीता यादव, साध्वी माँ देवेश्वरी, नरेश गुप्ता, पुष्पा राणा, मदिंर सभा के पदाधिकारियों सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories