Ad Image

सपेरा समुदाय का अस्तित्व खतरे में, बीन-तुम्बा धुन से भर रहे पेट

सपेरा समुदाय का अस्तित्व खतरे में, बीन-तुम्बा धुन से भर रहे पेट
Please click to share News

दीपक पुण्डीर

नई टिहरी। उत्तराखंड के रायवाला की सपेरा बस्ती झोपड़ियों में रहती है। शायद ही किसी की पक्की छत हो। चेहरे पर उदासी का भाव लाकर जब यह बात रायवाला सपेरा बस्ती से यात्रा के लिए घर से निकले इन दो भाइयों पिंटू नाथ और बूबानाथ ने जब गढ़ निनाद समाचार से बातचीत की, तो इससे तो यही लगता है कि सपेरा जाति का अस्तित्व ही संकट में है। सपेरा समुदाय को शायद ही सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिलता हो। गरीबों के उत्थान के लिए चल रही सरकारी योजनाओं के दावे खोखले नजर आते हैं और एक कड़वी सच्चाई सामने आती है।

पिंटू नाथ और बूबानाथ से परिचय हुआ तो उन्होंने बताया कि वह दोनों भाई आजकल यात्रा पर हैं। समय मिलने पर बस्तियों, कॉलोनियों में जाते हैं और असली बीन-तुम्बा धुन गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। इसके बदले लोग दान दक्षिणा दे देते हैं जिससे उनका खाने पीने का खर्चा निकल जाता है। बूबा नाथ का कहना है कि उनकी कई पीढ़ी यही काम करते आयी हैं, उन्होंने भी बहुत छोटी उम्र में अपने बड़े भाई पिंटू नाथ से यह वाद्य विद्या सीखी, फर्क इतना है कि पहले हम सांप साथ लेकर चलते थे उनका नृत्य दिखाते थे मगर अब सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है।

वह कहते हैं कि बीन और तुंबे पर देश भक्ति, गढ़वाली, कुमाऊंनी, पंजाबी और नागिन धुन सहित कई विभिन्न प्रकार की धुनें बजाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। उनके परिवार के बुजुर्ग भी यही काम करते थे। जब से सृष्टि की रचना हुई है। तभी से सपेरा जाति ने बीन की धुन बजानी शुरू की थी। उन्होंने बताया कि वे पिछले कई सालों से इस पेशे से जुड़े हैं और प्राचीन संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

1952 में वाइल्ड एक्ट बनाकर छीनी रोजी रोटी

सरकार ने सपेरा जाति पर वाइल्ड एक्ट 1952 लगाकर उनकी रोजी रोटी छीन ली गयी है। सपेरे बीन की धुन पर सांप दिखाकर अपने बच्चों का पेट पालने का काम करते थे, जिसे सरकार ने बंद कर दिया है। अस्तित्व बचाने के लिए सपेरों की सरकार से मांग की जाती रही है कि चिड़िया घरों में सिर्फ सपेरा जाति के ही लोगों को सांपों की देखरेख करने की नौकरी दी जानी चाहिए। इनकी मांग वाजिब भी है। 

अब बात करते हैं बीन की, तो जानते हैं बीन के बारे में-

बीन एक प्रकार का संगीत वाद्य है, जिसका प्रयोग प्राचीन समय से ही होता आ रहा है। इस वाद्य का प्रयोग मुख्यत: भारत में सांप का तमाशा आदि दिखाने वाले सपेरा लोग करते हैं। बीन कोई शास्त्रीय साज़ नहीं है लेकिन इसे ‘लोक साज़’ कहा जा सकता है, क्योंकि इसका प्रयोग लोक संगीत में होता है या कोई समुदाय विशेष इसका प्रयोग अपनी जीविका उपार्जन के लिए करता है। 

बीन

बीन को अक्सर सपेरों और सांपों से जोड़ा जाता है। अब बीन का प्रयोग करने वाले बहुत कम लोग हैं। भारत के गाँवों, गलियों या किसी चौराहे पर अब मुश्किल से ही कोई सपेरा बीन बजाता हुआ दिखाई देता है। यह एक लुप्त होता वाद्य है।

बीन को पूरे भारतवर्ष में अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत और पूर्वी भारत में इसे ‘पुंगी’, ‘तुम्बी’, ‘नागासर’ और ‘सपेरा बांसुरी’ के नामों से पुकारा जाता है। वहीं दक्षिण में इसके ‘नागस्वरम’, ‘महुदी’, ‘पुंगी’ और ‘पमबत्ती कुज़ल’ नाम प्रचलित है। ‘पुंगी’ या ‘बीन’ को सपेरे की पत्नी का दर्जा दिया जाता है और इस साज़ का विकास शुरु में लोक संगीत के लिए किया गया था।

बीन के चाहे कितने भी अलग-अलग नाम क्यों न हों, इस साज़ का जो गठन है, वह लगभग एक जैसा ही है। इसकी लम्बाई क़रीब एक से दो फुट तक की होती है। पारम्परिक तौर पर बीन एक सूखी लौकी से बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल एयर रिज़र्वर के लिए किया जाता है। इसके साथ बाँस की नलियाँ लगाई जाती हैं, जिन्हें ‘जिवाला’ कहा जाता है। इनमें से एक नली मेलडी के लिए और दूसरी ड्रोन प्रभाव के लिए होती है। 

सबसे ऊपर लौकी के अंदर एक नली डाली जाती है, जो एक बांसुरी के समान होती है जिसमें सपेरा फूँक मारता है। वह लौकी के अंदर हवा भरता है। यह हवा नीचे के हिस्से में लगी दो नलियों से बाहर निकलती है। इन दोनों नलियों में एक ‘बीटिंग रीड’ होता है, जो ध्वनि उत्पन्न करता है। पुंगी या बीन को बजाते समय कोई विशेष मुद्रा आवश्यक नहीं है। इसलिए इसे बजाने का जो सबसे प्रचलित तरीका है, वह है गोलाकार तरीके से साँस लेना। इसे अंग्रेज़ी में ‘सर्कुलर ब्रीदिंग’ कहा जाता है।

एक बात और कि  देश में सपेरा जाति के लिए कहीं भी समाधि स्थल नहीं बनवाए गए हैं। सपेरा जाति की बीन और तुम्बा बजाकर रोजी रोटी कमाने वाली संस्कृति की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। इस संस्कृति को विमुक्त होने से रोकने के लिये समय समय पर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories