नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला में लता मंगेशकर की स्मृति में वर्चुअल श्रद्धांजलि कार्यक्रम
हर्ष , विषाद ,ईश्वर भक्ति , राष्ट्र भक्ति , प्रेम ,परिहास में... हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है -- नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
रायवाला, हरिद्वार। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार में स्वर कोकिला लता मंगेशकर की स्मृति में वर्चुअल श्रद्धांजलि प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया।
इस मौके पर आश्रम के परमाध्यक्ष नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि मृत्यु सदैव शोक का विषय नहीं होती। मृत्यु जीवन की पूर्णता है। लता जी का जीवन जितना सुन्दर रहा है, उनकी मृत्यु भी उतनी ही सुन्दर हुई है। लता जी का शरीर पूरा हो गया। परसों सरस्वती पूजा थी, कल लता दीदी विदा हो गई और ऐसे लगा जैसे कि माँ सरस्वती इस बार अपनी सबसे प्रिय पुत्री को ले जाने ही स्वयं आयी थीं।
इस अवसर पर तारा देवी मठ अहमदाबाद के संत महामंडलेश्वर स्वामी त्रिदंडी महाराज ने बताया कि 93 वर्ष का इतना सुंदर और धार्मिक जीवन विरलों को ही प्राप्त होता है। लगभग पाँच पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुना है, और हृदय से सम्मान दिया है।
उनके पिता ने जब अपने अंतिम समय में घर की बागडोर उनके हाथों में थमाई थी, तब उस तेरह वर्ष की नन्ही जान के कंधे पर छोटे छोटे चार बहन-भाइयों के पालन की जिम्मेवारी थी। लता जी ने अपना समस्त जीवन उन चारों को ही समर्पित कर दिया। और आज जब वे गयी हैं तो उनका परिवार भारत के सबसे सम्मानित प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इससे अधिक सफल क्या होगा?
भारत पिछले अस्सी वर्षों से लता जी के गीतों के साथ जी रहा है। हर्ष में, विषाद में,ईश्वर भक्ति में, राष्ट्र भक्ति में, प्रेम में, परिहास में… हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है।
श्रद्धांजलि सभा में टोरंटो कनाडा से जुड़े अप्रवासी भारतीय प्रसिद्ध वकील प्रेम अहलूवालिया ने कहा कि लता जी गाना गाते समय चप्पल नहीं पहनती थीं। गाना उनके लिए ईश्वर की पूजा करने जैसा ही था। कोई उनके घर जाता तो उसे अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का मंदिर दिखातीं थीं। बस इन्हीं तीन चीजों को विश्व को दिखाने लायक समझा था उन्होंने। सोच कर देखिये, कैसा दार्शनिक भाव है यह… इन तीन के अतिरिक्त सचमुच और कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता संसार में। सब आते-जाते रहने वाली चीजें हैं।
रसिक ज्ञान भक्ति समिति की राष्ट्रीय प्रभारी साध्वी माँ देवेश्वरी ने कहा कि कितना अद्भुत संयोग है कि अपने लगभग सत्तर वर्ष के गायन करियर में लगभग 36 भाषाओं में हर रस/भाव के 50 हजार से भीअधिक गीत गाने वाली लता जी ने अपना पहले और अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान भजन ही गाया है। ‘ज्योति कलश छलके’ से ‘दाता सुन ले’ तक कि यात्रा का सौंदर्य यही है कि लता जी न कभी अपने कर्तव्य से डिगीं न अपने धर्म से! इस महान यात्रा के पूर्ण होने पर हमारा रोम रोम आपको प्रणाम करता है लता जी।