कलियुग में केवल नाम सिमरन से प्रभु प्राप्ति — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
उन्होंने कहा कि निस्वार्थ भाव से नितनेम ईश्वर की अराधना करने से मन व शरीर दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं, परंतु आज के इस दौर में भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे दौड़ रहे मनुष्य के पास इतना समय नहीं है कि वह ईश्वर की वंदना कर सके और यही उसके दुखों का कारण भी है। उन्होंने कहा कि जहां कहीं भी कथा चल रही हो और मनुष्य उधर से गुजर रहा हो तो कुछ देर के लिए ही सही रुकना चाहिए। इतना कर लेने मात्र से ही मनुष्य को जन्म-जमान्तरों के पापों से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन कथा में पहुंचने वाले के मन में सच्ची श्रद्धा का भाव होना जरूरी है। इस दौरान भजन मंडली द्वारा भी भजनों के माध्यम से प्रभु का गुणगान कर मौजूद श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। कथा सुनने के लिए काफी संख्या में महिला-पुरुष व बच्चों की भीड़ जुट रही है। मंदिर के पुजारी बाबा बुद्धनाथ ने इस 56 वें सत्संग में देशविदेश से पधारे सभी श्रदालुओं का आभार व्यक्त किया।