महर्षि बाल्मीकि जयंती पर खास–लोकेंद्र दत्त जोशी
महर्षि बाल्मीकि के जीवन से जुड़ा बहुत रोचक प्रसंग
कहतें हैं कि रत्नाकर (जो बाद में बाल्मीकि हुए ) बचपन भील जाति के लोगों के बीच में पले , बड़े हुए और बाद में डाकू हो गए। क्योंकि,भील जाती के लोग जंगलों में रह कर, तब यह कार्य करते थे। उनका बचपन का नाम रत्नाकर था।
डाकू रत्नाकर चोर डकैत के रूप में काम करते और रास्ते चलते चलते राहगीरों से डकैती कर समान लूटते। कभी- कभी तो आदमियों को जान तक से मार देते । उनसे चोरी डकैती कर,लुटे हुए समान आभूषणों और रुपए पैसों से अपना घर चलाते। यही उनके जीवन की दिनचर्या होती।
एक दिन नारद मुनि पर रत्नाकर ने धावा बोल कर लूट मार करने लगे। अपने स्वभाव वश, मुनि महाराज ने डाकू रत्नाकर कर को पूछा कि, चोरी डकैती कर अपने जीवन को चलाना ठीक नहीं है तुम इस काम को छोड़ दो, जो कर्म तुम कर रहे हो वह गलत और पाप है। इसका फल तुम्हे अकेला ही भोगना पड़ेगा। बाल्मीकि कुछ चकरा गए और, नारद मुनि को एक पेड़ पर मजबूती से बांध दिया।
अपने घर जा कर बारी बारी से बच्चों और पत्नी और सगे संबंधियों को ऋषि की बताई हुई बात पूछी कि, क्या तुम मेरे साथ मेरे बुरे कर्मों के फलों के भागीदार बनोगे ? इस पर डाकू रत्नाकर के बच्चों और पत्नी तथा सगे संबंधियों ने जबाव दिया कि हम तुम्हारे पापों के भागीदार नहीं होंगे? पाप और बुरे काम तुम करते हो फल भी तुम्ही भोगोगे।
बस क्या था। डाकू रत्नाकर के जीवन पर इस बात से गहरा धक्का और आघात लगा। उसी समय मन में चोरी डकैती छोड़ने की बात ठान ली । वे उस स्थान पर पहुंचे जहाँ उन्होंने नारद मुनि को पेड़ से बाँध रखा था। मुनि महाराज से क्षमा प्रार्थना की। इस बात से रत्नाकर डाकू का हृदय परिवर्तन हो गया। और उन्होंने सन्यास लेकर ज्ञान ध्यान करने लगे। वर्षों की घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी उनसे प्रसन्न हुए। ऋषि बाल्मीकि ने मरा मरा मरा मरा से राम राम राम राम राम राम सीखा । बाल्मीकी रामायण की रचना की। जो हिंदू धर्म शास्त्र का विश्व विख्यात श्रेष्ठ रचना बनी। वे डाकू रत्नाकर से महा ऋषि बाल्मीकि हो गए।
चूंकि, महा ऋषि बाल्मीकि रामायण काल में पैदा हुए, उन्होंने स्वयं माता सीता जी को भगवान राम के त्यागे जाने पर अपने आश्रम में शरण दी, बालक लव और कुश को अपने संरक्षण में शिक्षा दी। इसलिए आज भी लोग महा ऋषि बाल्मीकी द्वारा रचित रामायण को असली और श्रेष्ठ रामायण मानते हैं। महर्षि बाल्मीकी ज्योतिष और खगोल सास्त्र के भी महा ज्ञानी थे।
उनके जीवन से जुड़ा नारद मुनि वाला प्रसंग आज हमारे देश खास कर उत्तराखंड के वर्तमान परिदृश्य में सटीक बैठता है और इससे हमारे समाज को,अनैतिक कार्यों से बचने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
आज ऐसे त्यागी और महान ॠषि बाल्मीकि की जयंती पर उन्हे कोटि कोटि नमन करते हैं ।कोटि कोटि वंदन ।