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शिवपुराण सामाजिक समरसता का प्रतीक-ब्रह्मर्षि राष्ट्रीय संत डॉ दुर्गेश आचार्य 

शिवपुराण सामाजिक समरसता का प्रतीक-ब्रह्मर्षि राष्ट्रीय संत डॉ दुर्गेश आचार्य 
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टिहरी गढ़वाल 12 सितम्बर। शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से राष्ट्रीय संत डॉ दुर्गेश आचार्य जी ने पुरानी टिहरी जिसे ‘त्रिहरी’ के नाम से जाना जाता था की चर्चा करते हुए कहा ऐसी धरती जहां तीनों देव  ब्रह्मा, विष्णु और महेश विचरण किया करते थे ऐसी पुरानी टिहरी की याद हमें रुला देती है । आज वह डूब गई है। ऐसी पुण्य धरती पर शिव महापुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है। 

उन्होंने कथा आरंभ करते हुए कहा की मां पार्वती शिवजी से प्रश्न करती हैं की धरती पर आपका भक्त अनेक कष्टों में है उनके कष्टों को कैसे दूर किया जाए। आप ही उनके कष्टों का हरण कर सकते हैं।

कथा में एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि चंचुला जैसी वैश्या भी शिव कथा से पाप मुक्त हो शिव धाम पा गयी। भगवान शिव सारे विश्व के नाथ स्वामी होने से सभी प्राणियों को हृदय से लगाकर विश्वनाथ कहलाये। ये ही प्रथम समाजवाद के संस्थापक योगीश्वर हैं जो सभी वर्गों, जातियों, क्षेत्रों, प्रदेशों के प्राणियों को जोड़कर वैशविक शांति, सद्भावना को संस्थापित कर वसुधैव कुटुम्बकम की संस्थापना करते हैं।

कथा के पहले डा दुर्गेश आचार्य महाराज ने कहा था कि शिव महापुराण कथा मानव कल्याण की कथा है। इसके श्रवण से जीवन को जीने की आसान राह मिलती है। कथा श्रवण में आत्म शक्ति का संचार होता है और मनुष्य मानव कल्याण की ओर बढ़ता है।

इस मौके पर पूर्व राज्यमंत्री प्रवीण भंडारी, नित्यानंद बहुगुणा, जनवीर राणा, आनंद प्रसाद घिल्डियाल, सतीश थपलियाल, जगत मणि पैन्यूली, प्रताप पुंडीर, विमल पैन्यूली महिमानन्द नौटियाल आदि मौजूद रहे।


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Govind Pundir

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